संजीवनी क्रिया
स्वस्थ तन, स्वस्थ मन एवं आत्म-बोध को प्राप्त करने की एक वैज्ञानिक तकनीक
भली भांति गृहस्थ जीवन बिताते हुए संजीवनी क्रिया के माध्यम से गहन ध्यान में उतरने की साधना एवं नित्य-प्रति ब्याव्हारिक जीवन में प्रेम-प्रवाह – यही है परम पूज्य श्री राम कृपाल जी के आध्यात्मिक जीवन दर्शन का सार। दुनिया में विश्वास कि जगह विवेक को धर्म के प्राण के रूप में प्रतिष्ठित करते हुए परम पूज्य गुरुदेव लोगों में अंध-विश्वास की जगह आँखें पैदा करना चाहते हैं और धर्म के नाम पर व्यर्थ के क्रिया कांडों, सड़ी-गली रूढ़ियों, दम तोड़ती परम्पराओं के बोझ से एवं पाखंडों से सारी मनुष्यता को मुक्त करना चाहते हैं।
इस संसार में अनवरत संघर्ष हैं, तनाव और कलह है जिससे असंतोष और निराशा का वातावरण पैदा होता है। जिससे व्यक्ति अनेकों शारीरिक और मानसिक व्याधियों, दुर्व्यसनों से ग्रसित होकर जीवन की सुख शांति से विमुख हो जाता है। ऐसी परिस्थितियों में व्यक्ति की जीवनी शक्ति के विकास की आवश्यकता है। परम पूज्य स्वामी राम कृपाल जी द्वारा प्रतिपादित “संजीवनी क्रिया” एक ऐसी विधि है जिसके माध्यम से जीवनी शक्ति का विस्तार कर समस्त शारीरिक और मानसिक रोगों से मुक्त होकर व्यक्ति आत्म साक्षात्कार की प्राप्ति करता है। जिससे व्यक्ति परम शक्ति और आनंद को प्राप्त करते हुए भौतिक तथा अध्यात्मिक जगत में उन्नति पा लेता है।
आज के इस इस वैज्ञानिक एवं बुद्धिजीवी युग में महर्षि पतंजलि, अष्टावक्र, बुद्ध महावीर, नानक, कबीर और दादू के समय का सरल चित्त मनुष्य नहीं रहा, बदली परिस्थितियों में वह बहुत जटिल हो गया है। वह सभी कार्य मस्तिष्क से ही करता है, यहाँ तक कि प्रेम भी। अतः मनुष्य के जीवन केंद्र को मस्तिष्क से ह्रदय तक लाना ही साई-डिवाइन कि आध्यात्मिक साधना का प्राण है।
आज मनुष्य के पास इतना समय नहीं है कि योग के यम, नियम और आसन साधने में या महावीर के बताये अंतर्तप और बहिर्तप के चक्कर में पूरा जीवन ख़राब करें और यह जीवन क्या, जन्मों-जन्मों तक भी मनुष्य इन्हें साध नहीं सकते। अतः अपने परम श्रद्धेय सद्गुरु स्वामी सुदार्शनाचार्य जी महाराज द्वारा अर्जित अद्भुत शक्तियों को आशीर्वाद स्वरुप प्राप्त कर उनकी आज्ञा अनुसार परम पूज्य श्री राम कृपाल जी ने जन-जन के कल्याण हेतु प्राचीन काल से लेकर अब तक सारी दुनिया में जन्मी अनेकानेक साधना पद्धतियों अवं आध्यात्मिक क्रियाओं के गहन निरीक्षण, प्रयोग एवं आत्म-अनुभव के आधार पर आज के मनुष्य को ध्यान में रखते हुए जिस साधना को विकसित किया है उसका नाम है संजीवनी क्रिया। आज के मनुष्य के शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य के लिए महौषधि के साथ-साथ आत्म-साक्षात्कार कि कुंजी भी है – संजीवनी क्रिया।
Kaise kare sanjivanee kriya
संजीवनी क्रिया एक ऐसी क्रिया है जिसे गुरु के सान्निध्य में सीखना उपयुक्त होगा, इसी प्रयोजन से इसका विवरण यहाँ नहीं दिया गया है। इसे सीखने के लिए कृपया आश्रम में आने का कष्ट करें। अन्यथा, समय समय पर विभिन्न शिविरों का आयोजन किया जाता है, आप वहाँ भी जा सकते हैं।
I m from odisha. is there any center in odisha to learn sanjivini kriya