शरीर की सुनो

धर्म जीना सिखाता है। सच्चा धर्मगुरु जीवन को सुख, शांति और रोशनी से भर देता है। धर्म को दुकान बनाने वाले बेशुमार धर्मगुरुओं के बीच श्री रामकृपालजी रोशनी के ऐसे दिव्य पुंज हैं जिनके सान्निध्य मात्र से व्यक्ति के भीतर का अंधकार मिट जाता है। गहन ध्यान-साधना द्वारा प्राप्त ऊर्जा से ये कई चमत्कार भी करते हैं। मानव-जीवन के कष्टों को दूर कर उसके भीतर आनंद प्रवाहित करने का संकल्प लिए श्री रामकृपालजी के उदात्त विचार।

आप कहते हैं कि बच्चों ने पिज्जा मंगाया है पिज्जा ही खा लेते हैं। आपका हमींगफूड पिज्जा नहीं है। आपका हमींगफूड बर्गर नहीं है। लेकिन अधिकांश आहार गलत है इसी लिए मैं कहता हूं कि हमेशा शरीर की सुनो। शरीर से बड़ा और कोई गाइड नहीं। आपको वही बता सकता है। क्या खाना, कब खाना। मुझसे कई लोगों ने पूछा है कि इसकी कोई विधि बता दीजिये। मुझे इसके लिए संजीवनी क्रिया, महामेधा क्रिया, साइ-डिवाइन क्रिया का एक डाइट चार्ट भी दे दीजिये। मैंने कई बार सोचा कि डाइट चार्ट दे दूं जितने भी डाइट चार्ट बनाये जाते हैं वे सब आमक है। वे जबदस्ती कोई बात किसी दूसरे पर थोपने की बात करते हैं। डॉक्टरों से इस बारे में मेरा मतभेद है। मैं कोई भी अनुशासन आपके ऊपर थोपने के पक्ष में नहीं हूं। इसलिये मैं तो आपको महामंत्र देना चाहता हूं। निर्णय आपका शरीर करेगा। जैसे कोई मुझ से पूछे कि चार रोटी खानी चाहिए रात के समय। अगर प्रोफेसर हैं, तो काम चल जायेगा। लेकिन एक आदमी है जो बारह, चौदह द्घण्टे बिल्डिंग बनाता है। वो मजदूर यदि चार फुलका खायेगा तो बीमार हो जायेगा। चार दिन यदि चार फुलका खाता है तो बीमार हो गया। क्योंकि इससे इसकी आपूर्ति नहीं होगी। इस लिए मैं कहता हूं कि शरीर की सुनों नहीं तुम्हारा डाक्टर है। तुम्हारा शरीर सबसे बड़ा योगी है। तुम्हारा शरीर सबसे बड़ा जज है। स्वाद के कारण मत खाओ। जीभ के कारण मत खाओ। जीभ तो एक पहरेदार है, उसको मालिक मत बनाओ मालिक तुम खुद रहो। जो शरीर की सुनता है वही अपने शरीर से प्रेम करता है शरीर से खूब प्रेम करो, अपने पैरों को पहचानने की कोशिश करो। अपने पैर की अंगुलियां देखो। फिर अपने हाथों की अंगुलियां। प्यार से आप कभी-कभी शीशे में अपने हाथों को देखो अपने चेहरे को देखो। प्रेम करो यह एक अद्भुत यंत्र है। जो तुम्हारी हर समय मदद करता है शरीर से पे्रम करो और शरीर की सुनो। यही तुम्हारे आहार के संदर्भ में सबसे बड़ा मार्गदर्शक है। नियम कोई नहीं देना चाहता हूं नियम देने से तुम उलझ जाते हो। मुरारीलाल एक दिन भागे-भागें अपने द्घर पहुुंचते हैं। देखते हैं कि उनकी पत्नी ने रसोई में जितने प्याले थे सबके हैन्डल तोड़ रखे थे। उन्होने कहा कि यह सब उपद्रव क्यों मचा रखा है। उन्होंने कहा कि कुकिंग वाली बुक पढ़ रही थी उसे पढ़ कर कुछ बनाना चाह रही थी। उसमें लिखा था कि दूध और पानी की माप करने के लिए कोई पुराना कप भी चल सकता है। जिसमें कोई हैन्डल न लगा हो। ऐसा कोई कप नहीं था तो मैंने सोचा कि पहले बिना हैन्डल वाला कप ले लें। पुस्तक में यह लिखा था। तो मैंने हैन्डल तोड़ दिये। लेकिन कप नहीं मिला। नियम में बंध गये तो कभी माप नहीं मिल पायेगा। मंजिल पे कभी नहीं पहुंच पाओगे। एक बहुत बड़े अफसर थे। उन्होंने कहा कि मौसम है उन्होंने कहा कि समझदारी से काम करो छाते लेकर लोग आते हैं। सारा कारपेट भीग जाता है पानी-पानी हो जाता है तो तुम्हें नियम बता देता हूं, नहीं तो तुम्हारी भी छुट्टी हो जायेगी। कोई आदमी मिलने आता है तो सबसे पहले दरवाजे के बाहर जिसका छाता रखा हो, उसे ही अंदर आने देना। जिसका छाता दरवाजे के बाहर नहीं रखा है उसे बाहर से भीतर मत आने देना। वरना ड्राइंगरूम गंदा हो जायेगा। कोई आदमी मांगता है, दरवाजा खट-खटाता है। मुरारीलाल ने कहा बोलिए उन्होंने कहा कि मुझे मिलना है। मुरारीलाल ने कहा कि साहब का सख्त आदेश है कि छाता पहले दरवाजे के बाहर रखिये। उसने कहा कि छाता तो मैं लाया ही नहीं उसने कहा कि फिर तो बहुत मुश्किल है। पहले जाओ और छाता लेकर आओ। नियम-नियम है। बिना नियम के यदि मैंने जाने दिया तो मेरी छुट्टी हो जायेगी। साहब का आदेश है। ऐसे नियम मैं नहीं देता हूं-न तो धर्म के नाम पर, न ही स्वास्थ्य के नाम पर। मैं तो बीज मंत्र देता हूं शरीर की सुनो। फिर किसी और की सुननी नहीं पड़ेगी। तो सबसे महत्वपूर्ण बात आप आहार कैसे ले और कितना लें। तीसरी महत्वपूर्ण बात आहार के संबंध में पृथ्वी पर तीन प्रकार के लोग हैं एक सात्विक आहार लेने वाले, एक राजसी आहार लेने वाले और एक तामसी आहार लेने वाले व्यक्ति। तामसी आहार लेने वाले की मुख्य विशेषता होती है- वह खुब खाता है और ठण्डा भोजन खाता है। तीसरी बात जब भी मौका लग जाये तब खाता ही खाता है। चौथी खास बात कि वह बिस्तर पर पड़ा रहता है। पांचवी घर से बाहर नहीं निकलता। ऐसा आदमी जिसका जीवन बोझ बन जाता है तामसी भोजन ताज्य है। इस प्रकार का भोजन न करें। जो ठण्डा और ज्यादा हो। यह तामसी आहार हो गया। दूसरा राजसीवृति का आहार। जो बहुत गरम होता है। ये ऐसे लोग होते हैं जो हमेशा जल्दी में रहते है। रोटी तवे पे से उतरी नहीं कि सीधे उन के मुंह में जानी चाहिए। अगर देर हो गई तो कहते है कि ठण्डी हो गई। ऐसे लोग बहुत गरम-गरम खाना खाते हैं। बहुत उत्तेजक खाते है, ज्यादा मसाला वाला। जो हमेशा शरीर को उत्तेजित करे, आंदोलित करे। भागो, उठो, दौड़ो कहता रहें।

श्री सिद्ध सुदर्शन धाम
अवंतिका चिरंजीव विहार, गाजियाबाद

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