Category Archives: कहानियाँ

बूढ़े आदमी का घोड़ा

एक गाँव में एक बूढ़ा आदमी था, बहुत गरीब, लेकिन राजाओं को भी उससे जलन होती थी क्योंकि उसके पास एक सुंदर सफेद घोड़ा था। ऐसा घोड़ा पहले कभी नहीं देखा गया था- उसमें थी सुंदरता, बहुत भव्यता और ताकत। राज्य के राजा ने घोड़े को खरीदना चाहा और उन्होंने एक शानदार कीमत की पेशकश की, लेकिन बूढ़ा आदमी कहता रहा, “यह घोड़ा मेरे लिए घोड़ा नहीं है, वह एक व्यक्ति है, और आप एक व्यक्ति को कैसे बेच सकते हैं? वह एक दोस्त है, वह एक संपत्ति नहीं है। आप किसी मित्र को कैसे बेच सकते हैं? नहीं, यह संभव नहीं है “। वह आदमी गरीब था, हर प्रलोभन था, लेकिन उसने कभी घोड़ा नहीं बेचा।


एक सुबह, उन्होंने अचानक पाया कि घोड़ा अस्तबल में नहीं था। पूरा गाँव इकट्ठा हो गया और उन्होंने कहा, “मूर्ख बूढ़े आदमी। हमें पहले से पता था कि किसी दिन घोड़ा चोरी हो जाएगा। और आप इतने गरीब हैं-आप इतनी कीमती चीज़ की रक्षा कैसे कर सकते हैं? बेहतर होता कि इसे बेच दिया जाता। आप जो भी कीमत मांगते आपको मिल सकती थी, कोई भी शानदार कीमत संभव थी। अब घोड़ा चला गया है। यह एक प्रकार का अभिशाप है, एक दुर्भाग्य है “।


बूढ़े आदमी ने कहा, “बहुत दूर मत जाओ-बस इतना कहो कि घोड़ा अस्तबल में नहीं है। यह तथ्य है; बाकी सब एक निर्णय है। यह दुर्भाग्य है या नहीं, आप कैसे जानते हैं? आप कैसे न्याय करते हैं?”


लोगों ने कहा, “हमें मूर्ख बनाने की कोशिश मत करो। हम महान दार्शनिक नहीं हो सकते हैं, लेकिन किसी दर्शन की आवश्यकता नहीं है। यह एक साधारण तथ्य है कि एक खजाना खो गया है, और यह एक दुर्भाग्य है।”


बूढ़े ने कहा, “मैं इस बात पर कायम रहूंगा कि अस्तबल खाली है और घोड़ा चला गया है। मुझे और कुछ नहीं पता-यह एक दुर्भाग्य है या एक आशीर्वाद-क्योंकि यह सिर्फ एक भाग है। कौन जानता है कि इसके बाद क्या होने वाला है?”


लोग खिलखिलाकर हँस पड़े। उन्हें लगा कि बूढ़ा आदमी पागल हो गया है। वे हमेशा यह जानते थे कि वह थोड़ा पागल था; अन्यथा वह इस घोड़े को बेच देता और धनी हो जाता। लेकिन वह एक लकड़ी काटने वाले की तरह रह रहा था, और वह बहुत बूढ़ा था और अभी भी लकड़ी काट रहा था और जंगल से लकड़ी लाता था और बेचता था। वह दुख और गरीबी में साथ-साथ जी रहे थे। अब यह पूरी तरह से निश्चित था कि यह आदमी पागल था।


पंद्रह दिन बाद, अचानक एक रात, घोड़ा वापस आ गया। वह चोरी नहीं हुआ था, वह जंगल में भाग गया था। और न केवल वह वापस आया, वह अपने साथ एक दर्जन जंगली घोड़े भी ले आया। लोग फिर से इकट्ठा हुए और उन्होंने कहा, “बूढ़े आदमी, तुम सही थे और हम गलत थे। यह कोई दुर्भाग्य नहीं था, यह एक आशीर्वाद साबित हुआ। हमें खेद है कि हमने समझा नहीं और जोर दिया।”


बूढ़े आदमी ने कहा, “तुम फिर से बहुत दूर जा रहे हो। बस इतना कहें कि घोड़ा वापस आ गया है, और कहें कि बारह अन्य घोड़े मेरे घोड़े के साथ आए हैं-लेकिन न्याय न करें। कौन जानता है कि यह एक आशीर्वाद है या नहीं? यह केवल एक bबूढ़े आदमी ने कहा, “तुम फिर से बहुत दूर जा रहे हो। बस इतना कहें कि घोड़ा वापस आ गया है, और कहें कि बारह अन्य घोड़े मेरे घोड़े के साथ आए हैं-लेकिन न्याय न करें। कौन जानता है कि यह एक आशीर्वाद है या नहीं? यह केवल एक भाग है। जब तक आप पूरी कहानी नहीं जानते, आप कैसे न्याय कर सकते हैं? आप एक किताब का एक पृष्ठ पढ़ते हैं, आप पूरी किताब का आकलन कैसे कर सकते हैं? आप एक पृष्ठ में एक वाक्य पढ़ते हैं-आप पूरे पृष्ठ का न्याय कैसे कर सकते हैं? आप एक वाक्य में एक भी शब्द पढ़ते हैं-आप पूरे वाक्य का न्याय कैसे कर सकते हैं? और एक भी शब्द हाथ में नहीं है-जीवन इतना विशाल है-एक शब्द का एक टुकड़ा और आपने पूरे का न्याय किया है! यह मत कहो कि यह एक आशीर्वाद है, कोई नहीं जानता। और मैं अपने फैसले में खुश हूं; मुझे परेशान मत करो।


इस बार लोग ज्यादा कुछ नहीं कह सके; शायद बूढ़ा फिर से सही था। इसलिए वे चुप रहे, लेकिन अंदर से वे अच्छी तरह से जानते थे कि वह गलत था। बारह सुंदर घोड़े, घोड़े के साथ आए थे। थोड़ा प्रशिक्षण और उन सभी को बेचा जा सकता था और उन्हें बहुत पैसा मिलता था।

बूढ़े आदमी का एक छोटा बेटा था, केवल एक बेटा। उस बेटे ने जंगली घोड़ों को प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया; एक हफ्ते बाद ही वह एक जंगली घोड़े से गिर गया और उसके पैर टूट गए। लोग फिर से इकट्ठा हुए-और लोग हर जगह लोग हैं, जैसे आप हर जगह-उन्होंने फिर से न्याय किया। फैसला इतनी जल्दी आता है! उन्होंने कहा, “आप सही थे, फिर से आप सही साबित हुए। यह कोई आशीर्वाद नहीं था, यह फिर से एक दुर्भाग्य था। आपके इकलौते बेटे ने अपने पैर खो दिए हैं, और आपके बुढ़ापे में वह आपका एकमात्र सहारा था। अब आप पहले से कहीं अधिक गरीब हो गए हैं।”


बूढ़े आदमी ने कहा, “आप फैसले के प्रति आसक्त हैं। इतनी दूर मत जाओ। बस इतना ही कहें कि मेरे बेटे के पैर टूट गए हैं। कौन जानता है कि यह दुर्भाग्य है या आशीर्वाद? – कोई नहीं जानता। फिर से सिर्फ एक भाग, और अधिक आपको कभी नहीं दिया जाता है। जीवन टुकड़ों में आता है, और निर्णय कुल के बारे में है।


ऐसा हुआ कि कुछ हफ्तों के बाद देश का एक पड़ोसी देश के साथ युद्ध शुरू हो गया, और शहर के सभी युवाओं को जबरन सेना में ले जाया गया। केवल बूढ़े आदमी का बेटा बचा था क्योंकि वह अपंग था। रोते-रोते लोग जमा हो गए, क्योंकि हर घर से युवाओं को जबरन ले जाया जाता था। और उनके वापस आने की कोई संभावना नहीं थी, क्योंकि जिस देश ने हमला किया था वह एक बड़ा देश था और लड़ाई एक हारने वाली लड़ाई थी। वे वापस नहीं आने वाले थे।


पूरा शहर रो रहा था और रो रहा था, और वे बूढ़े आदमी के पास आए और उन्होंने कहा, “आप सही थे, बूढ़े आदमी! भगवान जानता है, आप सही थे-यह एक आशीर्वाद साबित हुआ। हो सकता है कि आपका बेटा अपंग हो, लेकिन फिर भी वह आपके साथ है। हमारे बेटे हमेशा के लिए चले गए हैं। कम से कम वह जीवित है और आपके साथ है, और, समय आने पर, वह चलना भी शुरू कर देगा। शायद थोड़ा लंगड़ा रह जाएगा, लेकिन वह ठीक हो जाएगा।”


बूढ़े आदमी ने फिर कहा, “आप लोगों से बात करना असंभव है, आप सिर्फ ऐसी ही बातें करते रहते हैं और आप निर्णय लेते रहते हैं। कोई नहीं जानता कि क्या होने वाला है! आप केवल यह कहेंः कि आपके बेटों को सेना में प्रवेश करने के लिए मजबूर किया गया है, और मेरे बेटे को मजबूर नहीं किया गया है। लेकिन कोई नहीं जानता कि यह एक आशीर्वाद है या दुर्भाग्य। इसे कभी कोई नहीं जान पाएगा। केवल भगवान ही जानते हैं।

संपर्क और जुड़ाव

एक साधु का न्यूयार्क में एक इंटरव्यू चल रहा था।

पत्रकार: सर, आपने अपने लास्ट लेक्चर में संपर्क (कान्टैक्ट) और जुड़ाव (कनेक्शन) पर स्पीच दिया लेकिन यह बहुत कन्फ्यूज करने वाला था। क्या आप इनका अंतर समझा सकते हैं ?

साधु मुस्कराये और उन्होंने कुछ अलग पत्रकारों से ही पूछना शुरू कर दियाः “आप न्यूयॉर्क से हैं?”

पत्रकार: हाँ

संन्यासी: “आपके घर मे कौन-कौन हैं?”

पत्रकार को लगा कि साधु उनका सवाल टालने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उनका सवाल बहुत व्यक्तिगत और उसके सवाल के जवाब से अलग था।

फिर भी पत्रकार बोला: मेरी “माँ अब नही हैं, पिता हैं तथा 3 भाई और एक बहन हैं ! सब शादीशुदा हैं। “

साधू ने चेहरे पर मुस्कान लाते हुए पूछा: “आप अपने पिता से बात करते हैं?”

पत्रकार चेहरे से गुस्सा झलकने लगा…

साधू ने पूछा, “आपने अपने फादर से पिछली बार कब बात की थी?”

पत्रकार ने अपना गुस्सा दबाते हुए जवाब दिया: “शायद एक महीने पहले।”

साधू ने पूछा: “क्या आप भाई-बहन अक़्सर मिलते हैं? आप सब आखिर में कब मिले एक परिवार की तरह?”

इस सवाल पर पत्रकार के माथे पर पसीना आ गया कि, इंटरव्यू मैं ले रहा हूँ या ये साधु? ऐसा लगा साधु, पत्रकार का इंटरव्यू ले रहा है?

एक आह के साथ पत्रकार बोला: “क्रिसमस पर 2 साल पहले”.

साधू ने पूछा: “कितने दिन आप सब साथ में रहे?”

पत्रकार अपनी आँखों से निकले आँसुओं को पोंछते हुये बोला: “3 दिन।”

साधु: “कितना वक्त आप भाई-बहनों ने अपने पिता के बिल्कुल करीब बैठ कर गुजारा?”

पत्रकार हैरान और शर्मिंदा दिखा और एक कागज़ पर कुछ लिखने लगा।

साधु ने पूछा: “क्या आपने पिता के साथ नाश्ता, लंच या डिनर लिया? क्या आपने अपने पिता से पूछा के वो कैसे हैं? माता की मृत्यु के बाद उनका वक्त कैसे गुज़र रहा है?

साधु ने पत्रकार का हाथ पकड़ा और कहा: ” शर्मिंदा, या दुःखी मत होना। मुझे खेद है अगर मैंने आपको अनजाने में चोट पहुँचाई हो, लेकिन ये ही आपके सवाल का जवाब है । “संपर्क और जुड़ाव” (कान्टैक्ट और कनेक्शन) आप अपने पिता के सिर्फ (संपर्क) “कान्टैक्ट” में हैं ‌पर आपका उनसे कोई “कनेक्शन” (जुड़ाव ) नही हैं। यू आर नॉट कनेक्टेड टू हिम. आप अपने पिता से संपर्क में हैं जुड़े नही हैं कनेक्शन हमेशा आत्मा से आत्मा का होता है। हार्ट से हार्ट का होता है। एक साथ बैठना, भोजन साझा करना और एक दूसरे की देखभाल करना, स्पर्श करना, हाथ मिलाना, आँखों का संपर्क होना, कुछ समय एक साथ बिताना आप अपने पिता, भाई और बहनों के संपर्क (“कान्टैक्ट“) में हैं लेकिन आपका आपस में कोई जुड़ाव (“कनेक्शन”) नहीं है।

पत्रकार ने आँखें पोंछी और बोला: “मुझे एक अच्छा और अविस्मरणीय सबक सिखाने के लिए धन्यवाद”।

आज यह भारत की भी सच्चाई हो चली है। सबके हज़ारों संपर्क (कॉन्टैक्ट्स) हैं पर कोई जुड़ाव (कनेक्शन) नहीं हैं। कोई विचार-विमर्श नहीं है। हर आदमी अपनी-अपनी नकली दुनिया में खोया हुआ है।

वो साधु और कोई नहीं “स्वामी विवेकानंद” थे।

तीन छन्नियों का परीक्षण

प्राचीन यूनान में सुकरात अपने ज्ञान और विद्वता के लिए बहुत प्रसिद्ध था। एक दिन एक परिचित व्यक्ति उसके पास आकर कहने लगा, मैंने आपके एक मित्र के बारे में कुछ सुना है, और वह आपको बताना चाहता हूं।

सुकरात ने कहा, दो पल रुको। तुम कुछ बताओ, इससे पहले मैं चाहता हूं कि हम एक छोटा-सा परीक्षण कर लें। परिचित ने हामी भर दी। सुकरात ने आगे बताया, इसे मैं तीन छन्नियों का परीक्षण कहता हूं। पहली बात तो यह बताओ कि क्या तुम यह सौ फीसदी दावे से कह सकते हो कि जो बात तुम मुझे बताने जा रहे हो, वह पूरी तरह सच है?

नहीं, परिचित ने कहा, दरअसल मैंने सुना है कि…सुकरात ने उसकी बात बीच में ही काटते हुए कहा, इसका अर्थ है कि तुम जो कहने जा रहे हो, उसके बारे में पूरी तरह आश्वस्त नहीं हो कि वह पूरी तरह सत्य है। चलो, अब दूसरी छन्नी का प्रयोग करते हैं। इसे मैं अच्छाई की छन्नी कहता हूं। यह बताओ कि तुम जो बताने जा रहे हो, क्या वह कोई अच्छी बात है?

नहीं, बल्कि वह तो…परिचित अपनी बात पूरी करता कि सुकरात ने उसे टोकते हुए कहा, अर्थात तुम जो कुछ कहने वाले थे, उसमें कोई भलाई की बात नहीं है। यह भी पता नहीं कि वह सच है या झूठ। चलो, छन्नी का एक परीक्षण अभी बचा हुआ है, और वह है, उपयोगिता की छन्नी। यह बताओ कि जो बात तुम बताने वाले हो, क्या वह किसी काम की है?

परिचित ने कहा, नहीं, ऐसा तो नहीं है। सुकरात ने इसके बाद कहा, बस हो गया। जो बात तुम बतानेवाले थे, वह न तो सत्य है, न ही भली, और न ही मेरे काम की। उसे जानने में कीमती समय नष्ट करने की जरूरत मैं नहीं समझता। इसीलिए मुझे मत बताओ।

चोरी की सजा

जेन मास्टर बनकेइ ने एक ध्यान शिविर लगाया, तो कई बच्चे उनसे सीखने आये। पहले दिन उन्होंने ध्यान के कुछ सूत्र बताए और यह भी कि अपने आचरण के साथ पड़ोसी के बारे में क्या-क्या ध्यान देना है। शिविर के दौरान किसी दिन एक छात्र को चोरी करते हुए पकड़ लिया गया।

बनकेइ को यह बात बताई गई, बाकी साधकों ने अनुरोध किया की चोरी की सजा के रूप में इस छात्र को शिविर से निकाल देना चाहिए। पर बनकेइ ने इस अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया और सबके साथ उस बच्चे को भी पढ़ाते-सिखाते रहे।

लेकिन कुछ दिन बाद फिर वैसी ही चोरी की घटना हुई। वही छात्र दुबारा चोरी करते हुए पकड़ा गया। उसे फिर बनकेइ के सामने ले जाया गया। इस बार तो साधकों को पूरी उम्मीद थी कि उसे शिविर से निकाल दिया जाएगा। पर इस बार भी उन्होंने छात्र को कोई सजा नहीं दी।

इस वजह से दूसरे बच्चे रुष्ट हो उठे और उन्होंने मिलकर बनकेइ को पत्र लिखा कि यदि उस छात्र को नहीं निकाला जाएगा, तो हम सब शिविर छोड़ कर चले जाएंगे। बनकेइ ने पत्र पढ़ा और सभी साधकों को तुरंत इकट्ठा होने के लिए कहा।

उनके इकट्ठा होने पर बनकेइ ने बोलना शुरू किया, ‘आप सभी बुद्धिमान हैं। आप जानते हैं कि क्या सही है और क्या गलत। यदि आप कहीं और पढ़ने जाना चाहते हैं, तो जा सकते हैं। पर यह बेचारा यह भी नहीं जानता कि क्या सही है और क्या गलत। यदि इसे मैं नहीं पढ़ाऊंगा तो इसे कौन और पढ़ाएगा?

आप सभी चले भी जाएं, तो भी मैं इसे यहां पढ़ाऊंगा।’ यह सुनकर चोरी करने वाला छात्र फूट-फूटकर रोने लगा। अब उसके अंदर से चोरी करने की इच्छा हमेशा के लिए जा चुकी थी। दूसरे छात्र उसे रोता देख कर उसे चुप कराने लगे।

भिक्षुक और शेर

एक बौद्ध भिक्षुक भोजन बनाने के लिए जंगल से लकड़ियाँ चुन रहा था कि तभी उसने कुछ अनोखा देखा, “कितना अजीब है ये !”, उसने बिना पैरों की लोमड़ी को देखते हुए मन ही मन सोचा.

“आखिर इस हालत में ये जिंदा कैसे है?” उसे आश्चर्य हुआ , “और ऊपर से ये बिलकुल स्वस्थ है”

वह अपने ख़यालों में खोया हुआ था कि अचानक चारो तरफ अफरा – तफरी मचने लगी; जंगल का राजा शेर उस तरफ आ रहा था. भिक्षुक भी तेजी दिखाते हुए एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया, और वहीँ से सब कुछ देखने लगा.  शेर ने एक हिरन का शिकार किया था और उसे अपने जबड़े में दबा कर लोमड़ी की तरफ बढ़ रहा था, पर उसने लोमड़ी पर
हमला नहीं किया बल्कि उसे भी खाने के लिए मांस के कुछ टुकड़े डाल दिए.

“ये तो घोर आश्चर्य है, शेर लोमड़ी को मारने की बजाये उसे भोजन दे रहा है.” , भिक्षुक बुदबुदाया, उसे अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था इसलिए वह अगले दिन फिर वहीँ आया और छिप कर शेर का इंतज़ार करने लगा.  आज भी वैसा ही हुआ , शेर ने अपने शिकार का कुछ हिस्सा लोमड़ी के सामने डाल दिया.

“यह भगवान् के होने का प्रमाण है!”  भिक्षुक ने अपने आप से कहा. “ वह जिसे पैदा करता है उसकी रोटी का भी इंतजाम कर देता है, आज से इस लोमड़ी की तरह मैं भी ऊपर वाले की दया पर जीऊंगा,  ईश्वर मेरे भी भोजन की व्यवस्था करेगा.” और ऐसा सोचते हुए वह एक वीरान जगह पर जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया.

पहला दिन बीता, पर कोई वहां नहीं आया, दूसरे दिन भी कुछ लोग उधर से गुजर गए पर भिक्षुक की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया.  इधर बिना कुछ खाए -पीये वह कमजोर होता जा रहा था.  इसी तरह कुछ और दिन बीत गए, अब तो उसकी रही सही ताकत भी खत्म हो गयी …वह चलने -फिरने के लायक भी नहीं रहा.  उसकी हालत बिलकुल मृत व्यक्ति की तरह हो चुकी थी कि तभी एक महात्मा उधर से गुजरे और भिक्षुक के पास पहुंचे.  उसने अपनी सारी कहानी महात्मा जी को सुनाई और बोला, “अब आप ही बताइए कि भगवान् इतना निर्दयी कैसे हो सकते हैं, क्या किसी व्यक्ति को इस हालत में पहुंचाना पाप नहीं है?”

“बिल्कुल है,” महात्मा जी ने कहा, “लेकिन तुम इतना मूर्ख कैसे हो सकते हो?  तुमने ये क्यों नहीं समझे कि भगवान् तुम्हे उसे शेर की तरह बनते देखना चाहते थे, लोमड़ी की तरह नहीं !!!”

दोस्तों, हमारे जीवन में भी ऐसा कई बार होता है कि हमें चीजें जिस तरह समझनी चाहिए उसके विपरीत समझ लेते हैं.  ईश्वर ने हम सभी के अन्दर कुछ न कुछ ऐसी शक्तियां दी हैं जो हमें महान बना सकती हैं, ज़रुरत है कि हम उन्हें पहचाने,  उस भिक्षुक का सौभाग्य था कि उसे उसकी गलती का अहसास कराने के लिए महात्मा जी मिल गए पर हमें खुद भी चौकन्ना रहना चाहिए कि कहीं हम शेर की जगह लोमड़ी तो नहीं बन रहे हैं.

बाज के बच्चे

बहुत समय पहले की बात है, एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किये ।  वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे, और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे। राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया।

जब कुछ महीने बीत गए तो राजा ने बाजों को देखने का मन बनाया , और उस जगह पहुँच गए जहाँ उन्हें पाला जा रहा था।  राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से भी शानदार लग रहे थे।  राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे आदमी से कहा, “मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ, तुम इन्हे उड़ने का इशारा करो।” आदमी ने
ऐसा ही किया।  इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे, पर जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था, वहीँ दूसरा, कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया जिससे वो उड़ा था।

ये देख, राजा को कुछ अजीब लगा।  “क्या बात है जहाँ एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”, राजा ने सवाल किया।  “जी हुजूर ,
इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है, वो इस डाल को छोड़ता ही नहीं।”

राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे, और वो दुसरे बाज को भी उसी तरह उड़ना देखना चाहते थे।  अगले दिन पूरे राज्य में ऐलान करा दिया गया कि जो व्यक्ति इस बाज को ऊँचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम दिया जाएगा।  फिर क्या था, एक से एक विद्वान् आये और बाज को उड़ाने का प्रयास करने लगे, पर हफ़्तों बीत जाने के बाद भी बाज
का वही हाल था, वो थोडा सा उड़ता और वापस डाल पर आकर बैठ जाता।

फिर एक दिन कुछ अनोखा हुआ, राजा ने देखा कि उसके दोनों बाज आसमान में उड़ रहे हैं।  उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा जिसने ये कारनामा कर दिखाया था। वह व्यक्ति एक किसान था।  अगले दिन वह दरबार में हाजिर हुआ। उसे इनाम में स्वर्ण मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने कहा, “मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ, बस तुम इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े विद्वान् नहीं कर पाये वो तुमने कैसे कर दिखाया।

“मालिक ! मैं तो एक साधारण सा किसान हूँ, मैं ज्ञान की ज्यादा बातें नहीं जानता, मैंने तो बस वो डाल काट दी जिसपर बैठने का बाज आदी हो चुका था, और जब वो डाल
ही नहीं रही तो वो भी अपने साथी के साथ ऊपर उड़ने लगा।”

दोस्तों, हम सभी ऊँचा उड़ने के लिए ही बने हैं। लेकिन कई बार हम जो कर रहे होते है उसके इतने आदी हो जाते हैं कि अपनी ऊँची उड़ान भरने की, कुछ बड़ा करने की काबिलियत को भूल जाते हैं।  यदि आप भी सालों से किसी ऐसे ही काम में लगे हैं जो आपके सही क्षमता के मुताबिक नहीं है तो एक बार ज़रूर सोचिये कि कहीं आपको भी उस डाल को काटने की ज़रुरत तो नहीं जिसपर आप बैठे हैं ?