सितम्बर 4
Posted by अजय प्रताप सिंह
करने वाला वही और कराने वाला भी वही है। उसके हाथ हजार हैं जबकि तुम तो उसके ‘हाथ’ भर हो। तुम तो बांस की पोली पोंगरी हो। जो स्वर निकल रहा है, जो ध्वनि निकल रही है, जो संगीत निकाल रहा है वह उसी का है। लेकिन यह संभव तभी हो सकता है जब अहंकार का विसर्जन होना शुरू हो जाए। गीता, कुरान, बाइबल का सार अमृत तत्व एक ही है अहंकार का विसर्जन। अहंकार से मुक्ति ही धर्म है।
क्रांति सन्देश, गुरु वाणी में प्रकाशित किया गया
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टैग: अहंकार विसर्जन
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