Author Archives: arunpbh

दीक्षा

दीक्षा के नाम पर बहुत शोर मचा है लेकिन कोई भी दीक्षा को परिभाषित नहीं करता है। दीक्षा के नाम पर केवल दूसरों का दोहन ही होता है। शिक्षा व दीक्षा दो शब्द हैं। शिक्षा की प्रक्रिया लम्बी व धीमी होती है। जबकि दीक्षा की प्रक्रिया सूक्ष्म व सटीक होती है। यह एक विशेष ज्ञान होता है जिसका तीव्र असर होता है। किसी भी विषय का विस्तृत अध्ययन शिक्षा है। लेकिन किसी विषय का विशेष ज्ञान दीक्षा है। अर्थात जैसे कोई मेडिकल का छात्र वर्षों अध्ययन व अभ्यास के बाद चिकत्सक बन जाता है और कुछ विशेष ज्ञान या अनुभव प्राप्त कर लेता है। और फिर यह ज्ञान या अनुभव अगले किसी चिकत्सक को देता है, जोकि सूक्ष्म व तीव्र प्रभावी होगा। यही दीक्षा है। आध्यात्म में भी दीक्षा दी जाती है जो कि क्रमिक होती है अर्थात एक के बाद एक क्रम से कई दीक्षा होती है। जब साधना की पोस्ट लिखूंगा तब इसकी व्याख्या की जाएगी तथा साधना व दीक्षा का संबंध भी बताया जाएगा।

Advertisement

आध्यात्मिक यात्रा में गुरु का महत्त्व

जीवन में जब भी आध्यात्मिक यात्रा आरंभ होगी तो सबसे पहली और मूलभूत आवश्यकता होगी गुरु की। गुरु ही वह माध्यम होगा जिस से आध्यात्मिक ज्ञान व क्रिया प्राप्त होगी क्योंकि आध्यात्म में पूरा ज्ञान कोडेड है अर्थात गुप्त है, ज्ञान तो है लेकिन क्रियान्वित कैसे किया जाएगा यह गुप्त है। और सारा आध्यात्मिक ज्ञान कोडेड है, गुप्त है, इस ज्ञान को डिकोड करने के लिए गुरु की आवश्यकता होती है।

संस्कृत साहित्य और भी क्लिष्ट हो जाता है क्योंकि सारी जानकारी संदर्भों (references) में होती है अर्थात पूर्ववर्ती ज्ञान की भी जानकारी होनी चाहिए। इसीलिए जीवन में आध्यात्मिक प्रगति के लिए गुरु परम आवश्यक है। गुरु केवल जानकारी एवं ज्ञान ही नहीं डिकोड करता बल्कि और भी बहुत सी क्रियाएँ नियंत्रित करता है। एक उच्चकोटि का गुरु क्या क्या कर सकता है इसका और अधिक वर्णन अगली पोस्ट्स में किया जाएगा।