वर्तमान में जीवन जीने का विज्ञान
मेरे प्राणों का एक ही सन्देश है, भौतिक संसार में आर्थिक प्रगति ही अध्यात्मिक विकास की, शांति, आनंद रूप परमात्मा को प्राप्त करने की सीढ़ी बन सकती है। और जो सन्देश मैं हमेशा देता रहा हूँ एक बार पुनः आपसे कहता हूँ कि आप इसी जीवन में परम शांति, परम आनंद और इस संसार कि समस्त उपलब्धियों को प्राप्त करना चाहते हैं तो मेरे जीवन के अनुभव किये हुए जो महत्त्वपूर्ण सूत्र हैं सिर्फ सुनें ह्रदय खोलकर , ह्रदय खोलकर सुनना ही आपको सबकुछ उपलब्ध करा देगा। आपको कोई तपस्या करने के लिये नहीं कह रहा हूँ सिर्फ इतना कह रहा हूँ कि आप मेरे शब्दों को सुनें, मेरी दृष्टि के माध्यम से, मेरे शब्दों के माध्यम से मुझे अपने भीतर प्रवेश करने का अवसर दें। मैं आपको तन मन धन तीनों प्रकार का सुख, तीनों प्रकार कि उपलब्धियां प्रदान करूंगा इसमें कोई संदेह नहीं है, इसमें कोई संदेह नहीं है। मैंने कहा मनुष्य के जीवन का सबसे बड़ा दुःख है कि वह आने वाले कल और बीते हुए कल के जालों में उलझा रहता है और जिंदगी में कभी वर्तमान में जीने का आनंद नहीं ले पाता है। जिसे ऋषियों ने माया कहा है वो कोई अप्सरा नहीं है, कोई सुंदरी नहीं है जो आपको उलझाये रहती है इस भंवर में, इस दुखों के जाल में। केवल आने वाला कल यानि भविष्य और बीता हुआ कल यानि भूत, ये दोनों ही आपके जीवन की ऊर्जा को नष्ट करते हैं और आप इस जिंदगी में जिसके लिये पैदा हैं वह परम शांति, वह परम आनंद और इस रूप में साक्षात् परमात्मा को नहीं प्राप्त हो पते हैं। परमात्मा तो सदैव वर्तमान में है, आनंद सदैव वर्तमान में है। अगर तुम सिर्फ वर्तमान में आ जाओ तो तुम्हारा तार परम आनंद से जुड़ जाता है इसलिए दुनिया में जितने धर्म हैं सबका सार है तुम कैसे वर्तमान में जी सको; सबमें इस विधि को, इस व्यवस्था को, इस विज्ञान को देने का प्रयास किया गया है। आज मैं आपसे चर्चा करना चाहता हूँ कि वर्तमान में जीना कैसे संभव है, वर्तमान में जीने का विज्ञान क्या है और वर्तमान में जीना आपको आ जाये तो कैसे आपके जीवन में क्रांति पैदा हो जाती है और आपका जीवन ऊर्जा का पुंज बन जाता है।
अपनी बात शुरू करना चाहता हूँ एक छोटी सी कहानी से। सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में एक दिन एक फकीर पहुँचता है और ऐसा नहीं है कि उसी दिन पहुँचता है, वह पिछले 10 सालों से लगातार, प्रतिदिन सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में हाजिर होता रहा और अपनी कुटी से, जिस जंगल में रहता था उस जंगल से एक फल लाकर राजा को रोज भेंट किया करता था दरबार में। राजा उस फल को लेता था और अपने वजीर को दे देता था। 10 साल तक लगातार यह क्रम चलता रहा, एक दिन संयोग से वह फकीर आया, उसने फल सम्राट को दिया और सम्राट ने उस फल को वजीर को न देकर, जो उसका पालतू बन्दर था, बगल में बैठा था , उस बन्दर को खाने के लिये दे दिया। बन्दर ने जैसे उस फल को खाया, फल तो खाया लेकिन उसके भीतर से बड़ा सा हीरे का टुकड़ा निकला। उस बड़े हीरे के चमकते टुकड़े को देखकर सम्राट विक्रमादित्य चौंक गये, हैरान रहे गये और कहा कि यह फल तो पिछले 10 सालों से रोज मुझे देता रहा और ये तो अद्भुत फल है, इसमें इतना बड़ा हीरा समाहित था और मुझे इसका पाता ही नहीं चला। उस फकीर ने कहा हुजूर, अगर आदमी होश में न जिये तो रोज-रोज बड़ी से बड़ी सम्पदा खोता चला जाता है और जो आपके साथ हुआ ये सारी मनुष्यता के साथ हो रहा है। ये अस्तित्व अद्भुत सम्पदा लेकर रोज आपके सामने प्रकट होता है लेकिन आप इतना बेहोशी में जी रहे हैं कि आप उस सम्पदा से वंचित हो जाते हैं। उस सम्पदा को, उन हीरों को कौड़ियों के भाव इधर-उधर फेंक देते हैं, इधर-उधर बेच देते हैं, इधर-उधर बर्बाद कर देते हैं। मैं पिछले 10 वर्षों से सिर्फ इसलिए तुम्हारे पास आता रहा हूँ क्योंकि मुझे तलाश है, एक पराक्रमी पुरुष, एक वीर पुरुष मिले जो जगा हुआ भी हो और होश में भी हो ताकि वो दुनिया में कुछ अद्भुत कार्य कर सके। मैं सिर्फ तुम्हें जगाने के लिये पिछले 10 सालों से आ रहा और आज वो घड़ी आयी हैं कि जब मैं तुम्हें जागने का सन्देश दे सकता हूँ। सम्राट ने कहा मैं जागना चाहता हूँ, तू मेरा मार्गदर्शन कर। फकीर ने कहा, अगर तू तैयार है तो आज अमावश कि रात है, आधी रात, ठीक आधी रात मरघट पर आ जाना, मैं तुम्हें जागने का महामंत्र दे दूंगा, वर्तमान में जीने का महामंत्र दे दूंगा, होश में जीने का महामंत्र दे दूंगा । वर्तमान में जीना ही होश में जीना है, वर्तमान में जीना ही जागे हुए जीना है, और यही सारे धर्मों का सार है। कहते हैं सम्राट अमावश कि आधी रात मरघट पर पहुँचता है, फकीर ने सम्राट से कहा – एक बड़ा अद्भुत अवसर है आज। उसने हाथ से इशारा करके कहा वो दूर जो वत-वृक्ष दिखाई पड़ता है, उसपर एक लाश टंगी हुयी है तू उस पेड़ पर चढ़ जा और उस लाश को रस्सी से काटकर गिरा दे और उस लाश को लादकर मेरे पास लेकर आ जाओ फिर मैं तुम्हें जागने का मन्त्र देता हूँ। एक चीज का ध्यान रखना, बिल्कुल शांत रहना, मौन रहना, बोलना नहीं, नहीं तो तुम खतरे में पड़ सकते हो, और फिर तुम्हारी इस दुनिया में कोई मदद नहीं कर सकता, तुम्हारी जान भी जा सकती है, एलर्ट रहना, सजग रहना, होशियार रहना। कहते हैं सम्राट जाता है वाट वृक्ष पर चढ़ कर रस्सी काट देता है, लाश नीचे गिरती है। जैसे ही लाश नीचे गिरती है खिलखिलाकर हंसने लगती है। सम्राट बोल पड़ा तू तो लाश है, तू इस तरह खिलखिलाकर हंस क्यों रहा है। जैसे ही सम्राट इतना बोल पड़ा वो लाश उड़ती है और जा कर फिर से पेड़ की डाल से लटक जाती है जैसे पहले लटकी हुई थी। अब सम्राट विक्रमादित्य चूक गये, फिर से फकीर के पास गये, फकीर ने कहा तुमने सावधानी नहीं बरती, तुम्हें आदेश दिया गया था कि शांत रहना, मौन रहना। तू फिर से जाकर प्रयास कर, शांत रहना, मौन रहना ताकि तुम वर्तमान में होने का अभ्यास कर सको। निर्विचार रहना, जो कुछ होता रहे उसके तुम सिर्फ साक्षी रहना, दृष्ट रहना, किसी प्रक्रिया में भागीदार मत बनना। एक अवसर और देता हूँ, ऐसा कह कर फकीर ने उसे भेजा, सम्राट फिर पेड़ पर चढ़ता है, रस्सी काटता है, लाश नीचे गिरती है और इस बार लाश को वो कंधे पर उठा लेता है, लेकर आगे चलता है, जैसे ही चलना शुरू करता है लाश एक कहानी सुनाने लगती है। वह मुर्दा एक कहानी सुनाने लगता है कि एक सद्गुरु था उसके पास एक सुन्दर पुत्री थी जो युवती थी। उस सद्गुरु के तीन शिष्य थे, तीनों शिष्य उस युवती के प्रेम में पद गये, तीनों ही युवक उस युवती से प्रेम करने लगे, अगाध प्रेम करने लगे। इतना प्रेम करने लगे कि सद्गुरु ने आदेश दिया अपनी पुत्री को, कि इन तीन युवकों में से जो तुम्हें प्रीतिकर लगे उसको चुन लो और उसके साथ तेरा विवाह संस्कार कर देता हूँ। लेकिन तीनों इतना अगाध प्रेम करते थे, उस युवती के लिए मुश्किल हो गया यह निर्णय कर पाना कि इन तीनों में मैं किसका चयन करूं। चुनाव करना असंभव हो गया, और इस पीड़ा में, इस द्वन्द में, इस तनाव में उस युवती ने आत्महत्या कर ली और जब उसने आत्महत्या कर ली तो तीनों सच्चे प्रेमियों ने तीन तरह का व्यव्हार किया। एक युवक फकीर के वेश में सारी पृथ्वी पर इधर-उधर घूमता रहा, दूसरा युवक उसकी अस्थियों को लेकर रोज गंगा में जाता, गंगा में अस्थियों को स्नान कराता और फिर अपने झोले में रख लेता, वह प्रतिदिन उन अस्थियों को स्नान कराने में लग गया। और तीसरा युवक, वह उसी मरघट पर जहाँ उसकी प्रेमिका को जलाया गया था, वह दिनरात धूनी रमाये उसी मरघट पर अपनी प्रेमिका कि प्रतीक्षा करने लगा। कहते हैं, एक दिन वह फकीर जो रोज घूमता था पागल हुआ अपनी प्रेमिका के लिए, उसको कोई तांत्रिक मिल गया, उस तांत्रिक ने उसको कुछ अस्थियाँ दी और कहा कि इसको ले जाकर के, जहाँ उस युवती को जलाया गया था , वहां पर तुम इसका प्रयोग करो, इसका प्रयोग करोगे तो वह युवती जिदा हो जाएगी। और वही हुआ, वह युवती उस मरघट पर जहाँ जलाई गयी थी, उसके प्रेमी ने उस तांत्रिक द्वारा बतायी गयी विधि से प्रयोग किया और वह युवती जिन्दा हो गयी।
Happy Thoughts,
Bahot bahot badhiya likha hai.
वर्तमान में जीने का विज्ञान —-बहुत ही अच्छी हैं
Best Speech
पिंगबैक: वर्तमान में जीवन जीने का विज्ञान | साइंस ऑफ़ डिवाइन लिविंग