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गुरु पूर्णिमा महोत्सव
गुरु पूर्णिमा के शुभ अवसर पर, गुरु पूर्णिमा का उत्सव मनाने एवं परम पूज्य साक्षी राम कृपाल जी का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु आप अपने परिवार, संबंधियों और मित्रों के साथ हृदय से आमंत्रित हैं।
मुख्य कार्यक्रम:
– “हँसता हुआ जीवन जीने का विज्ञान” विषय पर गुरुदेव द्वारा विशेष संदेश।
– सद्गुरु साक्षी श्री की दिव्य वाणी, दिव्य दृष्टि और पवित्र स्पर्श द्वारा सकारात्मक ऊर्जा का हस्तांतरण।
– संगीत एवं नृत्य के माध्यम से दिव्य परमानंद का अनुभव।
– भोजन महाप्रसाद का वितरण (अवश्य ग्रहण करें)।
महत्त्वपूर्ण: कृपया चरम क्षणों की असुविधा से बचने के लिए समय से पूर्व पहुंचें।
संपर्क: 09891178105, 09811847375
महत्त्वपूर्ण क्रांति-सूत्र
भली-भांति गृहस्थ जीवन बिताते हुए सिद्ध ऊर्जा साधना के माध्यम से गहन ध्यान में उतरने की साधना और व्यावहारिक जीवन में प्रेम का प्रवाह – यही है परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक जीवन दर्शन का सार! उनके द्वारा ध्यान और प्रेम की नाव से परमात्मा तक की यात्रा में जिन अद्भुत क्रांति-सूत्रों का पतवार के रूप में उपयोग किया जाता है उनका सार कुछ इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:-
1.ईश्वर नहीं, आनंद खोजो। परमात्मा कोई व्यक्तिवाची अस्तित्व नहीं है। इस अस्तित्व की परम ऊर्जा जिसे हम परमात्मा की संज्ञा देते आये हैं, वह शांति और आनंद के रूप में मनुष्य जीवन में प्रकट होती है। अतः शांति और आनंद की तलाश ही परमात्मा की खोज बन जाती है।
2.पल-पल मौज में जीते हुए निरंतर वर्तमान में जीने का अभ्यास – जहाँ आने वाले कल और बीते हुए कल की कोई चिंता न हो।
3.प्रेम को फैलाओ, परमात्मा स्वयं प्रकट हो जायेगा। अतः अहंकार के विसर्जन का नित्य अभ्यास जरूरी है क्योंकि जब तक अहंकार है तब तक प्रेम संभव ही नहीं।
4.समाज और धर्म के नाम पर बचपन से डाले गए रुढ़िवादी संस्कारों, विचारों, सड़ी-गली मान्यताओं और दम तोड़ती परम्पराओं को छोड़ देने का साहस करना और बच्चे जैसा सहज-सरल हो जाने का अभ्यास करना।
5.सत्य को, स्वयं को, आनंद को पाने के लिये सद्गुरु को प्राप्त करना और फिर जीवंत परमात्मा स्वरुप सद्गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण के भाव से कर्तापन के विसर्जन का अभ्यास करना।
6.परमात्मा इस ब्रम्हांड के अणु-अणु, कण-कण में व्याप्त है। जब चारों ओर परमात्मा दिखाई पड़ने लगे तो शरीर ही मंदिर बन जाता है और हस सांस प्रार्थना बन जाती है। फिर अलग से मंदिर और पूजा की जरूरत नहीं रह जाती है।
7.प्रार्थना का अर्थ मांगना या शिकायत करना नहीं है, बल्कि जो कुछ भी मिला है उसके लिये परमात्मा के प्रति गहन धन्यवाद के भाव से भर जाना है। धन्यवाद का भाव मंदिर-मस्जिद जाने से नहीं, असपताल जाने से पैदा हो सकता है। अस्पताल में जब तुम देखोगे की तुम्हारी छाती पर प्लास्टर नहीं चढ़ा है, तुम्हारे शरीर में किसी दूसरे के शरीर का खून नहीं डाला जा रहा है, तुम्हारे शरीर में नली द्वारा भोजन नहीं पहुँचाया जा रहा है तो तुम्हारे ह्रदय धन्यवाद के भाव से परमात्मा के चरणों में झुक जायेगा। इस प्रकार धन्यवाद के भाव से झुक जाने के नाम ही प्रार्थना है।
8.सिद्ध ऊर्जा प्रवाह – साधना का नित्य अभ्यास करना तथा साक्षी बनकर जीवन जीना ही श्रेष्ठ है। जीवन एक खेल है। यहाँ सब कुछ मात्र अभिनय है। किसी क्षण यह खेल समाप्त हो सकता है। अतः जिंदगी में कभी भी गंभीर नहीं होना है, मात्र खेल पूर्ण होना है। इस सत्य की गहन समझ से ही जिंदगी में साक्षी भाव और ध्यान की साधना प्रतिफलित होने लगती है।
उक्त सूत्रों के अतिरिक्त दो महत्त्वपूर्ण जीवन-क्रांति सूत्र श्रद्धेय सदगुरुदेव द्वारा शक्तिपात-दीक्षा के समय अन्तरंग व्यक्तिगत सान्निध्य में परम गोपनीय सम्पदा के रूप में प्रदान किये जायेंगे।
गाज़ियाबाद में गुरुपूर्णिमा महोत्सव सम्पन्न
कल गुरुपूर्णिमा का महोत्सव गाज़ियाबाद धाम पर आयोजित किया गया था। मुझे भी इस अवसर पर उपस्थित रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। झुग्गी झोपड़ी शिक्षा सेवा मिशन के बच्चों द्वारा प्रस्तुत किए गए कार्यक्रम बड़े ही मनोहारी थे। उनके द्वारा और उनके ऊपर संस्थान द्वारा की गयी मेहनत साफ दिख रही थी। हम लोग तो वहाँ सिर्फ कुछ घंटों के लिए ही गए थे परन्तु संचालक और सेवादार सुबह से ही तैयारियों में लगे हुए थे। कई घंटों की कड़ी मेहनत के बाद की स्वाभाविक थकान, खिन्नता और शिकन का कहीं कोई नामो-निशान तक नहीं था। यह अगर संभव हुआ था तो मात्र साक्षी श्री के सान्निध्य की वजह से। अपने भक्तों, अनुयायियों और शिष्यों से मिलकर साक्षी श्री को जो खुशी मिलती है वह भी साफ झलक रही थी साक्षी श्री के चेहरे पर।
साक्षी श्री ने छात्रों को ध्यान में रखकर “यू कैन टॉप” नामक एक पुस्तक लिखी थी जो कि हर एक छात्र को अवश्य पढ़नी चाहिए। इसमें स्वस्थ तन, स्वस्थ मन और आत्म-बोध के लिए बहुत ही सरल, वैज्ञानिक तकनीकियाँ समझाई गयी हैं जिनके अभ्यास से जीवन में महान सकारात्मक परिवर्तन लाए जा सकते हैं। इस पुस्तक की लगातार बढ़ती मांग को देखते हुए गुरुदेव की इच्छा थी कि इसका हिन्दी संस्करण भी बनाया जाय।
मेरे सौभाग्य और गुरुदेव के आशीर्वाद से यह कार्य करने का सुअवसर मुझे प्राप्त हुआ। पुस्तक का सरल हिन्दी में अनुवाद पूरा हो चुका है और अब यह बहुत शीघ्र ही पाठकों के लिए उपलब्ध होगी।
– अजय प्रताप सिंह
साइन्स डिवाइन आंदोलन
साइन्स डिवाइन आंदोलन
साइन्स डिवाइन आंदोलन का नेतृत्व साक्षी राम कृपाल जी जिन्हे हम प्रेम पूर्वक साक्षी श्री भी कहते हैं, द्वारा किया जा रहा है। वे एक प्रबुद्ध गुरु और परमात्मा के संदेश वाहक हैं। साई डिवाइन: साइन्स ऑफ डिवाइन लिविंग द्वारा उन्होने आध्यात्मिकता का सरलीकरण किया है जिससे कि सामान्य लोग भी उसका अनुभव कर सकें और उससे लाभान्वित हो सकें। साइन्स डिवाइन, विश्व में प्रेम और ध्यान का संदेश फैलाता है और स्वस्थ तन, स्वस्थ मन एवं आत्म-बोधित आत्माओं युक्त मानवता का निर्माण करता है। साइन्स डिवाइन आपको भौतिक सुविधाओं को भोगते हुए चिरस्थायी आनंद का स्वागत करने में समर्थ बनाता है।
साइन्स डिवाइन के माध्यम से साक्षी श्री एक सशक्त आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं, और व्यक्तियों को उन विचारधाराओं, अनुष्ठानों, और विश्वास प्रणालियों से मुक्त कराने के लिए सतत कार्यरत हैं जिन्होने मनुष्यता को अंधा और विभाजित कर रखा है। वे ईश्वर को, “सर्वव्यापी अनंत ऊर्जा जो स्वयं को शांति और आनंद के रूप अभिव्यक्त करती है जिसका कि अनुभव ही ‘प्रबोधन’ है”, के रूप में परिभाषित करते हैं ।
पश्चिम में, अधिकतर लोग अपना समय और ऊर्जा भौतिक उपलब्धियों में लगाते हैं जबकि पूर्व में लोगों ने आध्यात्मिक जागृति के लिये भौतिक जगत को त्याग दिया, जिसके संबंध में उनका विश्वास है कि उनकी दुखों से मुक्ति और प्रसन्नता प्राप्ति में सहायता करेगी। इसीलिए साक्षी श्री भौतिक और आध्यात्मिक जगत में सामंजस्यपूर्ण संतुलन बनाए रखने पर ज़ोर देते हैं। साक्षी श्री के “भीतर से सन्यास, बाहर से संसार” यानि बाहरी सांसारिक कर्तव्यों को पूरा करते हुए भीतर से आत्मसमर्पण के जीवन दर्शन का अभ्यास करके, बिना एक दूसरे से सम्झौता किये हुए व्यक्ति दोनों का ही आनंद ले सकता है।
यद्यपि, “विचार शक्ति” के विज्ञान को अपनाकर हम भौतिक जगत में जो भी चाहें प्राप्त कर सकते हैं, फिर भी हमें अंदर से शांति और आनंद की स्थिति में रहने का प्रयास करना चाहिए। हमें सुख और दुख, लाभ और हानि, विजय और पराजय जैसी द्वंद की स्थिति से बाहर निकलने का प्रयास करना चाहिए। कार के पहिये बहुत तेज गति से गतिमान होते हैं जबकि धुरी (ऐक्सेल) स्थिर रहती है, इसी प्रकार, व्यक्ति को बाहर से गतिमान और भीतर से धुरी की तरह स्थिर होना चाहिए।
साइन्स डिवाइन संजीवनी शिविरों के माध्यम से साक्षी श्री आनंदमय जीवन एवं आधुनिक युग की बीमारियों से निबटने के प्रभावशाली उपचार के लिये क्रांतिकारी अंतर्दृष्टि प्रदान करते रहे हैं। उनकी संजीवनी क्रिया, सिद्ध कामना क्रिया, साक्षी साधना आदि जैसी लघु, सामान्य एवं अत्यधिक प्रभावकारी वैज्ञानिक तकनीकियाँ विश्व भर के लोगों में आंतरिक परिवर्तन लाने का कार्य कर रही हैं।
साक्षी श्री अपनी दिव्य वाणी, चमत्कारी दृष्टि और पवित्र स्पर्श द्वारा सकारात्मक ऊर्जा का संचरण करते हैं। परामपूज्य गुरुदेव अपनी दिव्य शक्तियों द्वारा व्यक्तियों के भूत, वर्तमान और भविष्य को एक खुली पुस्तक की भांति पढ़ लेते हैं। वे न सिर्फ उनकी समस्याओं का बयान करते हैं, अपितु उनकी हर प्रकार की दैहिक, मानसिक, आर्थिक और पारिवारिक समस्याओं का तत्काल और स्थायी समाधान भी उपलब्ध कराते हैं।
महा मेधा वर्कशॉप
विद्यार्थियों के लिये साइन्स डिवाइन महा मेधा (मेगा माइंड) वर्कशॉप
परीक्षा और कैरियर में 100% सफलता के लिए मस्तिष्क की असीम शक्तियों का उन्मुक्तिकरण
रविवार , १४ अक्टूबर २०१२; १०:३० प्रातः (ए एम) से ०२:३० अपरान्ह (पी एम)
स्थान: हिंदी भवन, विष्णु दिगंबर मार्ग, नजदीक ‘आई टी ओ’, नई दिल्ली-११०००२
रजिसट्रेशन के लिये संपर्क करें: 9810865755 और 9891178105
वर्कशॉप की विषय-सूची:
- महामेधा क्रिया; मष्तिष्क की असीमित शक्तियों को उन्मुक्त करने की एक वैज्ञानिक तकनीक
- स्मृति और एकाग्रता में कई गुना वृद्धि के लिये अनुपूरक वैज्ञानिक पद्धतियाँ
- परीक्षा, कैरियर और जीवन में असीमित उपलब्धियों के लिये विचार शक्ति के विज्ञान का अनुप्रयोग
महामेधा क्रिया की अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें।
साइन्स डिवाइन दिल्ली टीम
मोबाइल: 9810865755
ई-मेल : sciencedvine@gmail.com
वेबसाइट: www.sciencedvine.org
फेसबुक: http://www.facebook.com/Sciencedvine
महामेधा क्रिया
मष्तिष्क की अनंत शक्तियों का अधिकतम उपयोग कराने वाली एक अत्यंत प्रभावशाली वैज्ञानिक विधि
आपका मष्तिष्क: कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य
मनुष्य का मष्तिष्क अत्यंत रहस्यपूर्ण शक्तियों का स्रोत है किन्तु, वैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हो चुका है की मनुष्य इन शक्तियों का 7 प्रतिशत से 15 प्रतिशत तक ही उपयोग कर पाता है, शेष मष्तिष्क क्षमता के उपयोग से सारी मनुष्यता वंचित रह जाती है। महामेधा क्रिया एक ऐसी परम वैज्ञानिक विधि है जिसके अभ्यास से मनुष्य अपनी मष्तिष्क क्षमता का अधिकतम उपयोग करने में सक्षम हो जाता है। यदि विद्यार्थी जीवन से ही इसका अभ्यास कर लिया जाये तो सम्पूर्ण जीवन में इसके चमत्कारी परिणाम अनुभव किये जा सकते हैं।
एक युवक के मष्तिष्क का औसत वजन 1.4 किग्रा होता है। मनुष्य के मष्तिष्क का वजन सम्पूर्ण शरीर के वजन का मात्र 3 प्रतिशत होता है, किन्तु शरीर के सम्पूर्ण आक्सिजन और रक्त आपूर्ति का 25 प्रतिशत उपभोग मष्तिष्क द्वारा ही किया जाता है। एक मष्तिष्क में 10 से 15 बिलियन न्यूरांस इतने सूक्ष्मातिसूक्ष्म होते हैं कि एक पिन के ऊपरी सिरे पर 20 हजार न्यूरांस समा जायेंगे। इन न्यूरांस के पारस्परिक अंतर्संबंधों के आधार पर ही व्यक्ति की बुद्धिमत्ता निर्धारित होती है। मष्तिष्क में इन न्यूरांस के अंतर्संबंधों की संख्या कम से कम 10 ट्रिलियन होती है। इन अंतर्संबंधों को स्य्नाप्सेस कहा जाता है।
१. महामेधा क्रिया क्या है?
विद्यार्थियों की मानसिक क्षमता एवं बौद्धिक प्रतिभा में कई गुना वृद्धि करने में सक्षम महामेधा क्रिया एकाग्रता, स्मरण-शक्ति एवं आत्म विश्वास पैदा करने की एक परम वैज्ञानिक तकनीक है जो आधुनिक युग की विभिन्न परीक्षाओं में सफलता के उत्कर्ष पर पहुँचाने में चमत्कारिक रूप से सहायक है। अब तक के प्रयोगों में पाया गया कि अधिकांश मामलों में विद्यार्थियों के परिणामों में ४० प्रतिशत या उससे भी अधिक की वृद्धि हुई है। इस क्रिया के अभ्यास से धूम्रपान, मद्यपान एवं अन्य मादक पदार्थों यथा ड्रग्स आदि के सेवन से स्वतः मुक्ति मिलने लगती है। क्रोध, उद्दंडता, डिप्रेसन एवं अति-कामुकता जैसे नकारात्मक भावों से छुटकारा दिलाने वाली महा औषधि है महामेधा क्रिया। यही नहीं इस क्रिया के कुछ दिनों के अभ्यास से समस्त प्रकार के नेत्र-विकार दूर हो जाते हैं तथा विद्यार्थियों की आँखों पर लगा चश्मा भी शीघ्र ही उतर जाता है।
२. महामेधा क्रिया क्यों?
आधुनिकतम वैज्ञानिक शोधों के अनुसार बौद्धिक क्षमता जन्म-जात है। यह निष्कर्ष भी उल्लेखनीय है कि लगभग १४ वर्ष कि आयु के पश्चात् मनुष्य का बौद्धिक विकास रुक जाता है क्योंकि तब तक उसका शरीर पूरी तरह निर्मित हो चुका होता है और वह प्रजनन क्रिया से दूसरे मनुष्य को जन्म देने में सक्षम भी हो जाता है। इस उम्र के बाद बौद्धिक क्षमता में वृद्धि करने का कोई उपाय नहीं बचता। अतः उपलब्ध मानसिक एवं बौद्धिक क्षमता का अधिकतम उपयोग करने की तरकीब ही एक मात्र उपाय है जिससे इस दिशा में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि संभव है।
वैज्ञानिक शोधों से अब यह सिद्ध हो चुका है कि मनुष्य अपनी मानसिक एवं बौद्धिक क्षमता का अधिकतम १५ प्रतिशत तक उपयोग कर पता है। अधिकांशतः अपनी मस्तिष्क-क्षमता का सिर्फ ६ प्रतिशत से ७ प्रतिशत तक ही उपयोग कर पता है। शेष मष्तिष्क-शक्तियां अप्रयुक्त पड़ी रह जाती हैं। महामेधा क्रिया मानव-मष्तिष्क में निहित क्षमता का अधिकतम उपयोग कराने वाली एक अत्यंत प्रभावशाली वैज्ञानिक विधि है। यदि अधिकांश लोग अपनी मष्तिष्क क्षमता का 10% से 20% तक ही उपयोग करने लगें तो यह दुनिया निश्चित ही अधिक सुन्दर, अधिक सुखमय और बिलकुल नयी हो जायेगी।
तनाव से राहत के लिए महामेधा
आकाश में ऊपर ऊंचाइयों तक उड़ सकते हैं। तब गुरुत्वाकर्षण की शक्ति आपके लिए उपयोगी बन जाती है। अगर आप उद्यम करते हैं, मनोबल और विचार शक्ति का प्रयोग करते हैं, तो सभी ग्रह आपके सहयोगी हैं, विरोधी नहीं। ये सारे भ्रम हैं। इसीलिए कहते हैं जिसका मनोबल ऊंचा होता है उसे और किसी चीज की जरूरत नहीं। नेपोलियन और हिटलर अपने मनन शक्ति के बल पर अपने हाथ की रेखाएं बदल देते थे। आपकी भी बदल सकते हैं। आप भी बदल सकते हैं अपनी जिंदगी। सिर्फ आपको अपने विचारों में परिवर्तन करने की विधि आ जाए। विचारों से परिर्वतन करने की तकनीक आ जाए। ग्रहों का प्रभाव १० प्रतिशत काम करता है ९० प्रतिशत विचारों की शक्ति काम करती है, आपका मनोबल काम करता है। मैंने एक महत्वपूर्ण सूत्र दिया आपको। हर दो-चार परिवार में एक व्यक्ति आपको मिल जाएगा, जो तनाव से ग्रसित होगा। तनाव एक मानसिक बीमारी है। जो चीज नहीं, मन उसको मान लेता है कि वह है और मन को महसूस भी होने लगता है। ये सारे नकारात्मक भाव, समस्त प्रकार के भय मनुष्य के चित्त में साकार हो उठते हैं। उसे ही तनाव कहते हैं। तनाव से मुक्त होने का सबसे प्रभावशाली उपाय है कि ऐसे व्यक्ति को सबसे पहले मेरे सम्पर्क में लाया जाय। ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में लाया जाए जो २४ घंटे हंसते हुए जीता हो। ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में लाया जाये जिसके जीवन में नाकारात्मकता आने से डरती हो, ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में जाया जाये जिसे न कहना आता ही नहीं तो, पहला उपाय ऐसे व्यक्ति को हंसी-खुशी के माहौल में लाया जाए। अगर कोई भी तनाव का मरीज मेरे पास आ जाए। दो-चार बार आ जायेगा तो मेरा सिद्ध वचन है कि उसका तनाव अपने आप खत्म होता चला जायेगा। उसे किसी डॉक्टर की जरूरत नहीं, एक बात। दूसरी बात, जिस परिवार का वह व्यक्ति है उस परिवार के लोग मानसिक रूप से, जिसके कहते हैं मैनटली, जिसको कहते हैं फीजियोथैरेपी, ऐसे व्यक्ति को फीजियोथैरेपी की जरूरत होती है। मानसिक रूप से उसे अपने विचारों में परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है। आप घर के सदस्य उसको सहयोग दे सकते हैं। उसके मानसिक विचारों में परिवर्तन लाने की दिशा में। इसके अलावा उसे किसी ऐसे व्यक्ति से भी सहयोग दिलाए जो उसकी शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों का भी उपचार कर दें। सबसे बड़ा उपचार जो मैं देना चाहता हूं। अगर आप उसे उपलब्ध करा सकें तो उस व्यक्ति को महामेधा क्रिया या संजीवनी क्रिया, इन दोनों में से कोई भी एक क्रिया का अभ्यास अवश्य कराएं। सिर्फ २१ दिन लगातार सुबह या शाम को महा मेधा क्रिया या संजीवनी क्रिया का अभ्यास कराएं। और ये क्रिया सीखने के लिए श्री सिद्ध सुदर्शन धाम में पूरी व्यवस्था है। वहां पर योग्य प्रशिक्षक है जो प्रतिदिन सायंकाल ५ से ६ बजे तक उपलब्ध रहते हैं। किसी भी सप्ताह में दो दिन शनिवार व रविवार में आप सीखिए। ये क्रिया तनाव के लिए रामबाण औषधि है। इस क्रिया को श्री सिद्ध सुदर्शन धाम में सीख सकता है वहां जाने पर संभावना है कि मुझसे मुलाकात भी हो जाएगी। और तनाव का समूल नाश हो सकता है और मैं उसमें सहयोग दूंगा। भगवान बुद्ध के पास एक व्यक्ति को ले जाया गया। वह अंधा था। भगवान बुद्ध से कहा कि आपके पास लाए हैं, कुछ चमत्कार करिए। भगवान बुद्ध ने कहा कि इसको किसी वैद्य या किसी चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। ये मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है पहले उसका मानसिक उपचार कराइए। पहले वह मानसिक रूप से स्वस्थ हो जाए तब इसका मानसिक विकास किया जा सकता है। बच्चा पहले स्वस्थ हो जाये तब उसे मैराथन के लिए तैयार किया जा सकता है। मानसिक रूप से स्वस्थ करने के लिए जरूरत है शारीरिक चिकित्सा की, मानसिक चिकित्सा की; मन और शरीर दोनों एक साथ जुड़े हुए हैं। अगर कोई मानसिक रूप से ठीक नहीं है, तो उसमें शारीरिक रूप से कुछ कमियां हैं। एक तल पर विकार होता है। तो दूसरे पर भी संवेषित होता हैं। शरीर अस्वस्थ है तो मन पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। एक ही चिकित्सा करेंगे तो दूसरा कैसे स्वस्थ होगा। शारीरिक एवं मानसिक उपचार के लिए मैंने आपको बताया कि दो विधियां हैं। इन दो विधियों का अगर २१ दिनों तक प्रयोग कर लें तो उसके बाद उस व्यक्ति में परिवर्तन आने शुरू हो जाएंगे। इस क्रिया को करने से पहले वह किसी चिकित्सक की सलाह लें। इस क्रिया को वही कर सकता है जो शारीरिक रूप से स्वस्थ हो। तो, प्रथम चरण में जो काम वैद्य का, चिकित्सक का है वह वैद्य या चिकित्सक से ही कराना चाहिए। उसके बाद जब वह शारीरिक तल पर स्वस्थ हो जाए। फिर सद्गुरू का कार्य शुरू होता है। महामेधा क्रिया के द्वारा, संजीवनी क्रिया के द्वारा और मेरे सानिध्य के द्वारा और मेरे व्यक्तिगत सम्पर्क के द्वारा उसकी समस्या का समाधान किया जा सकता है। अगर मैं आप में से किसी के भी काम आ सकूं, इतनी ही मेरी कामना है इतनी सी मेरी इच्छा है, मात्र यही एक इच्छा मुझे इस शरीर से जोड़े हुए है और कोई इच्छा नहीं है क्योंकि मेरा मानना है कि आप सब अनावश्यक रूप से दुखी हैं। आपके दुख में जीने का तनाव मे जीने का, अशांति में जीने का कोई सही कारण नहीं है आप केवल अपनी नासमझी के कारण दुख में जी रहे हो यदि मैं अपने को दुखों से दूर कर सकता हूं, तो यहां बैठे एक-एक व्यक्ति अपने को दुखों से मुक्त कर सकता है। सिर्फ समझ की जरूरत है। मेरा मानना है कि धर्म सिर्फ समझ की क्रान्ति है। आपके भीतर जिंदगी के प्रति समझ पैदा हो जाए। आपके भीतर हंसते हुए जीवन जीने की समझ पैदा हो जाए। जीवन एक खेल है सिर्फ एक खेल। जिसमें बहुत उथल-पुथल, उतार-चढ़ाव है कितना महत्वपूर्ण सत्य है कि जीवन एक खेल है। मैं यहां पर कहना चाहता हूं यहां ५० साल, ६० साल के लोग आये हुए हैं, आप सिर्फ अपने जीवन के ५० महत्वपूर्ण कार्य लिखकर जाइयेगा। उन ५० महत्वपूर्ण बातों को लिखकर हमें दे जाइए। आपके छक्के छूट जाएंगे, पसीने छूट जाएंगे। ५० महत्वपूर्ण बातें ५० साल की जिंदगी में नहीं मिलेगी आपको। आप करने की कोशिश करेंगे, आप लिखने की कोशिश करेंगे और आप हैरान हो जायेंगे। ५० साल की जिंदगी में ५० बातें आप लिख नहीं पा रहे हैं। एक दिन की जिंदगी उसको आप इतना महत्वपूर्ण मान लेते हैं। उस दिन की द्घटनाओं को कि आज के दिन का हर कार्य उसको आप इतना महत्वपूर्ण मान लेते हैं, आपकी जिंदगी नरक हो जाती है।
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