इसकी शुरुआत कैसे हुई

मेरा आध्यात्मिकता  की ओर जो  झुकाव या आकर्षण हुआ और जिस समय काल में हुआ उस समय परिस्थितियाँ ऐसी नहीं थीं जिन्हें इसका कारण माना जाय।   जो भी हुआ बस यूं ही होता चला गया।  यदा कदा हमारे जीवन में ऐसा कुछ घटता है,  ऐसे कुछ विचार आते हैं, ऐसे कुछ कर्म और क्रियाएं होती है, ऐसा कुछ आकर्षण, प्रतिकर्षण, उद्दीपन या जाना अनजान प्रभाव होता है, जो हमारी मूल विचारधारा एवं क्रिया कलापों से विलग होता है।  शायद इसे ही नियति का चलन कहते होंगे।   

योगासन, प्राणायाम और ध्यान में रुचि तो यौवन काल से ही थी और इसका कारण संभवतया हमारा विद्यालय था जहां पर कि इन सब कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान दिया जाता था।  समय के साथ चलते चलते जीवन बीतता गया और कभी इतना समय ही नहीं मिला, ऐसा कोई मार्गदर्शक ही जीवन में नहीं टकराया कि जो कोई दिशा दे सके।  लेकिन नियति अपने समय और अपने तरीके से आपको उस ओर भेज ही देती है जहाँ  वह चाहती है।   

मेरे ऑफिस में मेरे एक सीनियर, वर्मा सर (बदला हुआ नाम) थे, वर्मा सर लगभग ८० वर्ष के थे। वर्मा सर का मानना था की वह दुनिया का हर वह देश जो नक्शे पर दिखता है, घूम चुके थे। इस प्रकार का घूमना उनकी ऑफिशियल जरूरत भी थी और कुछ उन्हें इसका शौक भी था। अब यह तो निश्चित है कि उनकी पिछली और उस समय की ऑफिशियल प्रोफाइल भी इसी हिसाब से रही होगी। उनसे जीवन में बहुत कुछ सीखा हम सभी लोगों ने, जो उनके संपर्क में थे। जिसकी जैसी पसंद उसने वैसा सीखा। कुछ लोग उन्हें बहुत पसंद करते थे तो कुछ इसके विपरीत भी थे।  

मैंने अपने उस समय तक के जीवन में वर्मा सर जैसा स्वस्थ, ऊर्जावान, नियम का पक्का, सुलझा हुआ इंसान नहीं देखा था, बल्कि अभी तक नहीं देखा है। वर्मा सर को आखिरी के कुछ महीनों में काफी सारी स्वास्थ्य समस्याएं भी उत्पन्न हो गई थी। उन्हें कई प्रकार के दर्द सहने पड़ रहे थे, वह ऑफिस आते थे, अपना सारा काम करते थे, लेकिन दर्द उनके चेहरे पर स्पष्ट दिखता था। हम सभी का जैसा उनसे लगाव था, हमें उनका वह दर्द अच्छा नहीं लगता था।  

मुझे इसका कोई उपाय तो नहीं पता था लेकिन मैं सोचता था कि ऐसा कुछ तो अवश्य होगा जो ऐसे लोगों को राहत दे सके जो कष्ट में हों। मैं सोचता था कि मानव सभ्यता और मेडिकल साइंस का विकास तो बाद में हुआ लेकिन जीव के कष्ट और उनका उपाय तो पहले से ही होगा। ईश्वर के नियम और उनकी योजनाओं में कमी नहीं हो सकती। यही सोच कर इधर उधर खोजने लगा बिना किसी दिशानिर्देश के, बिना किसी ज्ञान के, बिना किसी अनुभव के।  

उसी दौरान मुझे ब्लॉगिंग का नया नया शौक लगा था, मैं एक गुरुजी की बातों को नोट करता था और उनकी सहमति से उन बातों को अपने ब्लॉग पर पोस्ट करता था। मैंने कुछ दिनों में यह गौर किया कि एक विशेष व्यक्ति मुझे (मेरे ब्लॉग पोस्ट्स पर) जाने अनजाने में फॉलो कर रहा था। शायद हमारी विचारधारा में समन्वय था। फिर उत्सुकतावश मैंने उन्हें भी फॉलो करना प्रारंभ कर दिया। मुझे समझ में आया कि वह एक विशेष स्पिरिचुअल हीलिंग सिस्टम का प्रचार कर रहे थे। मुझे भी उत्सुकता जगी और मैं उन्हें लगातार फॉलो किया, कुछ समय बाद उनसे संपर्क भी हुआ और मैं भी उसी एनर्जी सिस्टम का एक भाग बन गया। मुझे लगा कि मैंने कुछ ढूँढ ही लिया आखिरकार, लेकिन मेरे आश्चर्य के लिये बताया गया कि आप कुछ नहीं ढूंढते हैं, बल्कि आपको ढूंढा जाता है।  

बस, इसी प्रकार इसका प्रारंभ हुआ, और आज यह सब लिखते समय तक मुझे इस सिस्टम में करीब ९ साल पूरे हो चुके हैं। इस समय काल में बहुत सारे अनुभव हुए, बहुत सारी सफलताएं मिलीं, बहुत सारी असफलताएं मिलीं और अनुभव भी।  

अपने अनुभव एक-एक करके साझा करूंगा और वह भीतरी ज्ञान भी साझा करने का प्रयास करूंगा जिसका कुछ अंश मैंने प्राप्त और अनुभव किया है।  

आपके भीतर के परमात्मा को हृदय से प्रणाम।  

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About अजय प्रताप सिंह

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Posted on मई 16, 2022, in अनुभव and tagged . Bookmark the permalink. टिप्पणी बन्द इसकी शुरुआत कैसे हुई में.

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