चोरी की सजा
जेन मास्टर बनकेइ ने एक ध्यान शिविर लगाया, तो कई बच्चे उनसे सीखने आये। पहले दिन उन्होंने ध्यान के कुछ सूत्र बताए और यह भी कि अपने आचरण के साथ पड़ोसी के बारे में क्या-क्या ध्यान देना है। शिविर के दौरान किसी दिन एक छात्र को चोरी करते हुए पकड़ लिया गया।
बनकेइ को यह बात बताई गई, बाकी साधकों ने अनुरोध किया की चोरी की सजा के रूप में इस छात्र को शिविर से निकाल देना चाहिए। पर बनकेइ ने इस अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया और सबके साथ उस बच्चे को भी पढ़ाते-सिखाते रहे।
लेकिन कुछ दिन बाद फिर वैसी ही चोरी की घटना हुई। वही छात्र दुबारा चोरी करते हुए पकड़ा गया। उसे फिर बनकेइ के सामने ले जाया गया। इस बार तो साधकों को पूरी उम्मीद थी कि उसे शिविर से निकाल दिया जाएगा। पर इस बार भी उन्होंने छात्र को कोई सजा नहीं दी।
इस वजह से दूसरे बच्चे रुष्ट हो उठे और उन्होंने मिलकर बनकेइ को पत्र लिखा कि यदि उस छात्र को नहीं निकाला जाएगा, तो हम सब शिविर छोड़ कर चले जाएंगे। बनकेइ ने पत्र पढ़ा और सभी साधकों को तुरंत इकट्ठा होने के लिए कहा।
उनके इकट्ठा होने पर बनकेइ ने बोलना शुरू किया, ‘आप सभी बुद्धिमान हैं। आप जानते हैं कि क्या सही है और क्या गलत। यदि आप कहीं और पढ़ने जाना चाहते हैं, तो जा सकते हैं। पर यह बेचारा यह भी नहीं जानता कि क्या सही है और क्या गलत। यदि इसे मैं नहीं पढ़ाऊंगा तो इसे कौन और पढ़ाएगा?
आप सभी चले भी जाएं, तो भी मैं इसे यहां पढ़ाऊंगा।’ यह सुनकर चोरी करने वाला छात्र फूट-फूटकर रोने लगा। अब उसके अंदर से चोरी करने की इच्छा हमेशा के लिए जा चुकी थी। दूसरे छात्र उसे रोता देख कर उसे चुप कराने लगे।
Posted on जनवरी 23, 2022, in कहानियाँ. Bookmark the permalink. टिप्पणी करे.