परमात्मा-कौन, कहाँ?
एक वृक्ष अपने लिए नहीं जिया करता है, वह दूसरों के लिए जीता है। वह अपनी छाया से भी लाभ देता है। वह अपनी गहन छाया में सबको बैठाता है, उसके पत्तों और फल से भी लाभ होता है। जीना उसी आदमी का श्रेष्ठ है, जो दूसरों के लिए जीये, अपने लिये जिया तो क्या जिया।
वह धर्म क्या है जिसमें खुशी न हो। वह धर्म क्या जिसमें आनंद न हो, वो धर्म क्या है जिसमें आत्मा प्रफुल्लित होकर रोम रोम न खड़े हो जायें। वह मायूस धर्म किस काम का है, जिससे चेहरे पर उदासी बनी रहे और रात-दिन चिंता बनी रहे। धर्म वही है जो आनंदित हो, प्रफुल्लित हो, खुशी देता हो।
Posted on जुलाई 25, 2015, in प्रवचन. Bookmark the permalink. टिप्पणी करे.