जनवरी 30
Posted by अजय प्रताप सिंह
इस संसार में बहुत कुछ है जो तुम्हें भी उलझाये रहता है। वही आने वाला कल और वही बीता हुआ कल। भूतकाल और भविष्यकाल। पूरा संसार मानो बाजार है जिसमें तुम उलझे पड़े हो। अगर तुम्हें साक्षी की तरह जीना आ जाये, घटनाओं को सिर्फ देखते हुए जीना आ जाये, तुम निर्णय मत दो, तुम उलझो नहीं, जो कुछ हो रहा है उसके दृष्टा बन जाओ, उसके साक्षी बन जाओ, तो साक्षी बनते ही तुम वर्तमान में जीने लगते हो और वर्तमान में जीना जैसे ही शुरू होता है वैसे ही भीतर का आनंद फूट पड़ता है। भीतर आनंद के झरने फूट पड़ते हैं, ये साक्षी भाव की साधना है, इसी को हम कहते हैं ध्यान। और संजीवनी क्रिया के माध्यम से, महामेधा क्रिया के माध्यम से हम आपको साक्षी की अवस्था में ले जाते हैं और यह साधना – मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों के चक्कर काटने से नहीं अपने जीवन को साधने से होती है। वर्तमान में रहने का अभ्यास करने से यह सिद्ध होता है। तो पहला उपाय वर्तमान में जीने का साक्षी होकर जीना, दृष्टा होकर जीना, तटस्थ होकर जीना, चीजों को देखते रहना, ये समझना कि मैं कर्ता नहीं हूँ, मैं तो सिर्फ दृष्टा हूँ, जो कुछ भी हो रहा है मैं सिर्फ उसका देखने वाला हूँ करने वाला हूँ। जब कर्ता भाव का विसर्जन हो जाता है, तब आपके भीतर यह भाव भर जाता है कि सबकुछ तो इस अस्तित्व में हो रहा है, रोज-रोज कहता हूँ – रोटी खाते हो खून बन जाती है, गाय भूसा खाती है भूसा दूध बन जाता है। इस संसार में जाड़ा-गर्मी-बरसात, दिन-रात, अंधकार-प्रकाश, सब-कुछ अपने हिसाब से आ रहा है – जा रहा है, आपकी कोई भूमिका नहीं है। आपकी साँसें आ रही हैं, जा रही हैं, प्रकृति सन्देश दे रही है कि सबकुछ अस्तित्व में, अस्तित्व कि ऊर्जा से संचालित हो रहा है। करोणों-अरबों ग्रह-नक्षत्र, सूर्य, चाँद, तारे इस ब्रम्हांड में अपनी धुरी पर घूम रहे हैं, कोई एक-दूसरे से टकराता नहीं है, एक नियम में यह अस्तित्व सबको नियंत्रित किये हुए है, सबको समाहित किये हुए है, सबकुछ स्वतः हो रहा है। अगर तुम्हारे भीतर से यह भाव हट जाये कि तुम करने वाले हो तो जब तुम कर्ता नहीं रह जाते हो तो तुम साक्षी बन जाते हो। तो हमेशा ये अभ्यास करो कि तुम कर्ता नहीं हो, साक्षी हो, दृष्टा हो। खाना खा रहे हो तो उस समय देखो कि ये शरीर खाना खा रहा है। तुम शरीर नहीं हो, शरीर को खाना खाते हुये देखना अपने शरीर के बाहर खड़े होकर, ये साक्षी का अभ्यास है। तुम मुझे सुन रहे हो, अपने शरीर के बाहर खड़े हो जाओ और देखो कि गुरुदेव बोल रहे हैं और तुम्हारा शरीर सुन रहा है और तुम दोनों को देख रहे हो, गुरुदेव को भी देख रहे हो। जो भी – जितने भी कृत्य तुम करते हो उन सारे कृत्यों के प्रति तुम साक्षी हो जाओ तो साक्षी होते-होते, साक्षी का अभ्यास करते-करते तुम वर्तमान में जीने लगोगे। तुम्हारे भीतर समर्पण घटित होगा।
Posted on जनवरी 30, 2014, in प्रवचन. Bookmark the permalink. टिप्पणी करे.
टिप्पणियाँ बंद कर दी गयी है.
इस ब्लॉग को फॉलो करने के लिए अपना ई मेल एड्रेस भरें और ई मेल द्वारा नयी पोस्ट्स की सूचना प्राप्त करें
Email Address:
फॉलो करें