वर्तमान में जीवन जीने का विज्ञान
भरोसा चमत्कार करता है, भरोसा जादू करता है। ये मूर्तियों की रचना आध्यात्म के वैज्ञानिकों ने क्यों की? ताकि मूर्ति में तुम परमात्मा की प्रतिष्ठा करके मूर्ति के माध्यम से ही तुम उस परिणाम को प्राप्त कर सको जो समर्पण के माध्यम से प्राप्त होता है। समर्पण ही सभी धर्मों का सार है। मैं तो सारी दुनिया को सन्देश देता हूँ कि समर्पण ही धर्म है। और समर्पण का अगर अभ्यास अगर आपको हो जाय तो समर्पण के चमत्कारिक परिणाम हो सकते हैं। समर्पण घटते ही जो दूसरी महत्त्वपूर्ण घटना घटती है वह है अहंकार का विसर्जन। तुम सब कुछ छोड़ देते हो कि करने वाला मैं नहीं हूँ, करने वाले गुरुदेव हैं, करने वाले प्रभु हैं, परमात्मा हैं, तब अहंकार धीरे-धीरे विसर्जित होने लगता है और अहंकार ही तो सब दुखों का मूल है। अहंकार के दो पैर हैं। अहंकार का पहला पैर है – मैंने जो किया, मैं जो था, मैंने जो बनाया – यानि ‘भूतकाल’ और अहंकार का दूसरा पैर है – मैं कल क्या कर सकता हूँ, मैं कल क्या करूंगा, मैं कल क्या बनूँगा, मैं कल क्या हो जाऊँगा – यानि ‘भविष्यकाल’। इन दोनों पैरों पर अहंकार खड़ा होता है। अगर इस भूतकाल और भविष्यकाल की चिंता हट जाय तो अहंकार गिर जाता है, यानि अगर तुम वर्तमान में आ जाओ तो इसके दोनों पैर गिर गए। अगर तुम वर्तमान में जीने लगे तो अहंकार विसर्जित हो जाता है और इसका उल्टा भी सही है कि अगर तुम अहंकार को विसर्जित कर दो, अहंकार को छोड़ने का अभ्यास कर लो सद्गुरु के प्रति समर्पण के माध्यम से तो निश्चित रूप से तुम वर्तमान में जीने लगोगे। भूत की चिंता ख़त्म हो जायेगी, भविष्य की चिंता ख़त्म हो जायेगी – इसके ख़त्म होते ही तुम वर्तमान में आ जाओगे और वर्तमान में आ जाना ही परमानन्द को प्राप्त कर लेना है।
Posted on सितम्बर 24, 2013, in क्रांति सन्देश. Bookmark the permalink. 1 टिप्पणी.
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