अहंकार का विसर्जन

करने वाला वही और कराने वाला भी वही है।  उसके हाथ हजार हैं जबकि तुम तो उसके ‘हाथ’ भर हो।  तुम तो बांस की पोली पोंगरी हो।  जो स्वर निकल रहा है, जो ध्वनि निकल रही है, जो संगीत निकाल रहा है वह उसी का है।  लेकिन यह संभव तभी हो सकता है जब अहंकार का विसर्जन होना शुरू हो जाए।  गीता, कुरान, बाइबल का सार अमृत तत्व एक ही है अहंकार का विसर्जन।  अहंकार से मुक्ति ही धर्म है।

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About अजय प्रताप सिंह

Light Worker

Posted on सितम्बर 4, 2013, in क्रांति सन्देश, गुरु वाणी and tagged . Bookmark the permalink. टिप्पणी करे.

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