महामेधा क्रिया

मष्तिष्क की अनंत शक्तियों का अधिकतम उपयोग कराने वाली एक अत्यंत प्रभावशाली वैज्ञानिक विधि

आपका मष्तिष्क:  कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्य

मनुष्य का मष्तिष्क अत्यंत रहस्यपूर्ण शक्तियों का स्रोत है किन्तु, वैज्ञानिक शोधों से यह सिद्ध हो चुका है की मनुष्य इन शक्तियों का 7 प्रतिशत से 15 प्रतिशत तक ही उपयोग कर पाता है, शेष मष्तिष्क क्षमता के उपयोग से सारी मनुष्यता वंचित रह जाती है।  महामेधा क्रिया एक ऐसी परम वैज्ञानिक विधि है जिसके अभ्यास से मनुष्य अपनी मष्तिष्क क्षमता का अधिकतम उपयोग करने में सक्षम हो जाता है।  यदि विद्यार्थी जीवन से ही इसका अभ्यास कर लिया जाये तो सम्पूर्ण जीवन में इसके चमत्कारी परिणाम अनुभव किये जा सकते हैं।
एक युवक के मष्तिष्क का औसत वजन 1.4 किग्रा होता है।  मनुष्य के मष्तिष्क का वजन सम्पूर्ण शरीर के वजन का मात्र 3 प्रतिशत होता है, किन्तु शरीर के सम्पूर्ण  आक्सिजन और रक्त आपूर्ति का 25 प्रतिशत उपभोग मष्तिष्क द्वारा ही किया जाता है।  एक मष्तिष्क में 10 से 15 बिलियन न्यूरांस इतने सूक्ष्मातिसूक्ष्म होते हैं कि एक पिन के ऊपरी सिरे पर 20 हजार न्यूरांस समा जायेंगे। इन न्यूरांस के पारस्परिक अंतर्संबंधों के आधार पर ही व्यक्ति की बुद्धिमत्ता निर्धारित होती है।  मष्तिष्क में इन न्यूरांस के अंतर्संबंधों की संख्या कम से कम 10 ट्रिलियन होती है।  इन अंतर्संबंधों को स्य्नाप्सेस कहा जाता है।

१. महामेधा क्रिया क्या है?
विद्यार्थियों की मानसिक क्षमता एवं बौद्धिक प्रतिभा में कई गुना वृद्धि करने में सक्षम महामेधा क्रिया एकाग्रता, स्मरण-शक्ति एवं आत्म विश्वास पैदा करने की एक परम वैज्ञानिक तकनीक है जो आधुनिक युग की विभिन्न परीक्षाओं में सफलता के उत्कर्ष पर पहुँचाने में चमत्कारिक रूप से सहायक है। अब तक के प्रयोगों में पाया गया कि अधिकांश मामलों में विद्यार्थियों के परिणामों में ४०  प्रतिशत या उससे भी अधिक की वृद्धि हुई है।  इस क्रिया के अभ्यास से धूम्रपान, मद्यपान एवं अन्य मादक पदार्थों यथा ड्रग्स आदि के सेवन से स्वतः मुक्ति मिलने लगती है।  क्रोध, उद्दंडता, डिप्रेसन एवं अति-कामुकता जैसे नकारात्मक भावों से छुटकारा दिलाने वाली महा औषधि है महामेधा क्रिया। यही नहीं इस क्रिया के कुछ दिनों के अभ्यास से समस्त प्रकार के नेत्र-विकार दूर हो जाते हैं तथा विद्यार्थियों की आँखों पर लगा चश्मा भी शीघ्र ही उतर जाता है।

२. महामेधा क्रिया क्यों?
आधुनिकतम वैज्ञानिक शोधों के अनुसार बौद्धिक क्षमता जन्म-जात है। यह निष्कर्ष भी उल्लेखनीय है कि लगभग १४ वर्ष कि आयु के पश्चात् मनुष्य का बौद्धिक विकास रुक जाता है क्योंकि तब तक उसका शरीर पूरी तरह निर्मित हो चुका होता है और वह प्रजनन क्रिया से दूसरे मनुष्य को जन्म देने में सक्षम भी हो जाता है। इस उम्र के बाद बौद्धिक क्षमता में वृद्धि करने का कोई उपाय नहीं बचता। अतः उपलब्ध मानसिक एवं बौद्धिक क्षमता का अधिकतम उपयोग करने की तरकीब ही एक मात्र उपाय है जिससे इस दिशा में महत्त्वपूर्ण उपलब्धि संभव है।

वैज्ञानिक शोधों से अब यह सिद्ध हो चुका है कि मनुष्य अपनी मानसिक एवं बौद्धिक क्षमता का अधिकतम १५ प्रतिशत तक उपयोग कर पता है। अधिकांशतः अपनी मस्तिष्क-क्षमता का सिर्फ ६ प्रतिशत से ७ प्रतिशत तक ही उपयोग कर पता है। शेष मष्तिष्क-शक्तियां अप्रयुक्त पड़ी रह जाती हैं। महामेधा क्रिया मानव-मष्तिष्क में निहित क्षमता का अधिकतम उपयोग कराने वाली एक अत्यंत प्रभावशाली वैज्ञानिक विधि है।  यदि अधिकांश लोग अपनी मष्तिष्क क्षमता का 10% से 20% तक ही उपयोग करने लगें तो यह दुनिया निश्चित ही अधिक सुन्दर, अधिक सुखमय और बिलकुल नयी हो जायेगी।

तनाव से राहत के लिए महामेधा

आकाश में ऊपर ऊंचाइयों तक उड़ सकते हैं। तब गुरुत्वाकर्षण की शक्ति आपके लिए उपयोगी बन जाती है। अगर आप उद्यम करते हैं, मनोबल और विचार शक्ति का प्रयोग करते हैं, तो सभी ग्रह आपके सहयोगी हैं, विरोधी नहीं। ये सारे भ्रम हैं। इसीलिए कहते हैं जिसका मनोबल ऊंचा होता है उसे और किसी चीज की जरूरत नहीं। नेपोलियन और हिटलर अपने मनन शक्ति के बल पर अपने हाथ की रेखाएं बदल देते थे। आपकी भी बदल सकते हैं। आप भी बदल सकते हैं अपनी जिंदगी। सिर्फ आपको अपने विचारों में परिवर्तन करने की विधि आ जाए। विचारों से परिर्वतन करने की तकनीक आ जाए। ग्रहों का प्रभाव १० प्रतिशत काम करता है ९० प्रतिशत विचारों की शक्ति काम करती है, आपका मनोबल काम करता है। मैंने एक महत्वपूर्ण सूत्र दिया आपको। हर दो-चार परिवार में एक व्यक्ति आपको मिल जाएगा, जो तनाव से ग्रसित होगा। तनाव एक मानसिक बीमारी है। जो चीज नहीं, मन उसको मान लेता है कि वह है और मन को महसूस भी होने लगता है। ये सारे नकारात्मक भाव, समस्त प्रकार के भय मनुष्य के चित्त में साकार हो उठते हैं। उसे ही तनाव कहते हैं। तनाव से मुक्त होने का सबसे प्रभावशाली उपाय है कि ऐसे व्यक्ति को सबसे पहले मेरे सम्पर्क में लाया जाय। ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में लाया जाए जो २४ घंटे हंसते हुए जीता हो। ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में लाया जाये जिसके जीवन में नाकारात्मकता आने से डरती हो, ऐसे व्यक्ति के सम्पर्क में जाया जाये जिसे न कहना आता ही नहीं तो, पहला उपाय ऐसे व्यक्ति को हंसी-खुशी के माहौल में लाया जाए। अगर कोई भी तनाव का मरीज मेरे पास आ जाए। दो-चार बार आ जायेगा तो मेरा सिद्ध वचन है कि उसका तनाव अपने आप खत्म होता चला जायेगा। उसे किसी डॉक्टर की जरूरत नहीं, एक बात। दूसरी बात, जिस परिवार का वह व्यक्ति है उस परिवार के लोग मानसिक रूप से, जिसके कहते हैं मैनटली, जिसको कहते हैं फीजियोथैरेपी, ऐसे व्यक्ति को फीजियोथैरेपी की जरूरत होती है। मानसिक रूप से उसे अपने विचारों में परिवर्तन करने की आवश्यकता होती है। आप घर के सदस्य उसको सहयोग दे सकते हैं। उसके मानसिक विचारों में परिवर्तन लाने की दिशा में। इसके अलावा उसे किसी ऐसे व्यक्ति से भी सहयोग दिलाए जो उसकी शारीरिक एवं मानसिक व्याधियों का भी उपचार कर दें। सबसे बड़ा उपचार जो मैं देना चाहता हूं। अगर आप उसे उपलब्ध करा सकें तो उस व्यक्ति को महामेधा क्रिया या संजीवनी क्रिया, इन दोनों में से कोई भी एक क्रिया का अभ्यास अवश्य कराएं। सिर्फ २१ दिन लगातार सुबह या शाम को महा मेधा क्रिया या संजीवनी क्रिया का अभ्यास कराएं। और ये क्रिया सीखने के लिए श्री सिद्ध सुदर्शन धाम में पूरी व्यवस्था है। वहां पर योग्य प्रशिक्षक है जो प्रतिदिन सायंकाल ५ से ६ बजे तक उपलब्ध रहते हैं। किसी भी सप्ताह में दो दिन शनिवार व रविवार में आप सीखिए। ये क्रिया तनाव के लिए रामबाण औषधि है। इस क्रिया को श्री सिद्ध सुदर्शन धाम में सीख सकता है वहां जाने पर संभावना है कि मुझसे मुलाकात भी हो जाएगी। और तनाव का समूल नाश हो सकता है और मैं उसमें सहयोग दूंगा। भगवान बुद्ध के पास एक व्यक्ति को ले जाया गया। वह अंधा था। भगवान बुद्ध से कहा कि आपके पास लाए हैं, कुछ चमत्कार करिए। भगवान बुद्ध ने कहा कि इसको किसी वैद्य या किसी चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए। ये मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है पहले उसका मानसिक उपचार कराइए। पहले वह मानसिक रूप से स्वस्थ हो जाए तब इसका मानसिक विकास किया जा सकता है। बच्चा पहले स्वस्थ हो जाये तब उसे मैराथन के लिए तैयार किया जा सकता है। मानसिक रूप से स्वस्थ करने के लिए जरूरत है शारीरिक चिकित्सा की, मानसिक चिकित्सा की; मन और शरीर दोनों एक साथ जुड़े हुए हैं। अगर कोई मानसिक रूप से ठीक नहीं है, तो उसमें शारीरिक रूप से कुछ कमियां हैं। एक तल पर विकार होता है। तो दूसरे पर भी संवेषित होता हैं। शरीर अस्वस्थ है तो मन पर भी उसका प्रभाव पड़ता है। एक ही चिकित्सा करेंगे तो दूसरा कैसे स्वस्थ होगा। शारीरिक एवं मानसिक उपचार के लिए मैंने आपको बताया कि दो विधियां हैं। इन दो विधियों का अगर २१ दिनों तक प्रयोग कर लें तो उसके बाद उस व्यक्ति में परिवर्तन आने शुरू हो जाएंगे। इस क्रिया को करने से पहले वह किसी चिकित्सक की सलाह लें। इस क्रिया को वही कर सकता है जो शारीरिक रूप से स्वस्थ हो। तो, प्रथम चरण में जो काम वैद्य का, चिकित्सक का है वह वैद्य या चिकित्सक से ही कराना चाहिए। उसके बाद जब वह शारीरिक तल पर स्वस्थ हो जाए। फिर सद्गुरू का कार्य शुरू होता है। महामेधा क्रिया के द्वारा, संजीवनी क्रिया के द्वारा और मेरे सानिध्य के द्वारा और मेरे व्यक्तिगत सम्पर्क के द्वारा उसकी समस्या का समाधान किया जा सकता है। अगर मैं आप में से किसी के भी काम आ सकूं, इतनी ही मेरी कामना है इतनी सी मेरी इच्छा है, मात्र यही एक इच्छा मुझे इस शरीर से जोड़े हुए है और कोई इच्छा नहीं है क्योंकि मेरा मानना है कि आप सब अनावश्यक रूप से दुखी हैं। आपके दुख में जीने का तनाव मे जीने का, अशांति में जीने का कोई सही कारण नहीं है आप केवल अपनी नासमझी के कारण दुख में जी रहे हो यदि मैं अपने को दुखों से दूर कर सकता हूं, तो यहां बैठे एक-एक व्यक्ति अपने को दुखों से मुक्त कर सकता है। सिर्फ समझ की जरूरत है। मेरा मानना है कि धर्म सिर्फ समझ की क्रान्ति है। आपके भीतर जिंदगी के प्रति समझ पैदा हो जाए। आपके भीतर हंसते हुए जीवन जीने की समझ पैदा हो जाए। जीवन एक खेल है सिर्फ एक खेल। जिसमें बहुत उथल-पुथल, उतार-चढ़ाव है कितना महत्वपूर्ण सत्य है कि जीवन एक खेल है। मैं यहां पर कहना चाहता हूं यहां ५० साल, ६० साल के लोग आये हुए हैं, आप सिर्फ अपने जीवन के ५० महत्वपूर्ण कार्य लिखकर जाइयेगा। उन ५० महत्वपूर्ण बातों को लिखकर हमें दे जाइए। आपके छक्के छूट जाएंगे, पसीने छूट जाएंगे। ५० महत्वपूर्ण बातें ५० साल की जिंदगी में नहीं मिलेगी आपको। आप करने की कोशिश करेंगे, आप लिखने की कोशिश करेंगे और आप हैरान हो जायेंगे। ५० साल की जिंदगी में ५० बातें आप लिख नहीं पा रहे हैं। एक दिन की जिंदगी उसको आप इतना महत्वपूर्ण मान लेते हैं। उस दिन की द्घटनाओं को कि आज के दिन का हर कार्य उसको आप इतना महत्वपूर्ण मान लेते हैं, आपकी जिंदगी नरक हो जाती है।

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About अजय प्रताप सिंह

Light Worker

Posted on अक्टूबर 4, 2012, in कार्यक्रम, गुरु वाणी, महामेधा क्रिया. Bookmark the permalink. 1 टिप्पणी.

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