पुण्य का पुरस्कार

जीवन में कभी पाप न करने वाला एक फकीर था।  मृत्यु होने के बाद वह सीना तान करके गया कि मैं तो सीधे स्वर्ग में ही प्रवेश कर जाऊंगा।  पूरी जिंदगी भर वह संभल कर चला था और निश्चिन्त भी था, इसीलिए उसमें थोड़ी अकड़ भी थी।  सीना ताने जब वह स्वर्ग के दरवाजे पर पहुंचा तो दरवाजा बंद था।  बाहर दूत खड़ा था। उसने फकीर का रिकॉर्ड देख कर कहा, भाई, यह पहला आदमी मेरी जिंदगी में ऐसा आया है जिसने धरती पर रहकर कोई पाप नहीं किया।  अब वहां का द्वारपाल बड़े संकट में पड़ गया कि उसके साथ क्या सलूक किया जाय?  उसने कहा, मेरे दोस्त मैं बहुत परेशान हूँ।  हमारे स्वर्ग के संविधान के अनुसार जिसने बहुत पाप किया हो उसे तो नरक में भेज दिया जाता है।  लेकिन जिसने पाप करके अपने पापों का प्रायश्चित कर लिया हो उसे स्वर्ग में भेजा जाता है।  तो उसने कहा कि आप तो इसमें कहीं भी फिट नहीं हो रहे हो।  आपने तो कोई पाप ही नहीं किया, तो मैं आपको न स्वर्ग भेज सकता हूँ और न नरक भेज सकता हूँ।

वह बेचारा फकीर बहुत परेशान, बहुत हैरान था।  उसकी दुर्दशा को देखकर उस द्वारपाल ने कहा, देखो मैं तुम्हें बारह घंटे का समय देता हूँ, तुम्हें वापस पृथ्वी पर भेज देता हूँ।  तुम जाओ और छोटा सा पाप कर लो और उसका प्रायश्चित करके आ जाओ।  मैं तुम्हें स्वर्ग भेज दूंगा ताकि हमारी संविधान की व्यवस्था में आप फिट हो जायें।  वह फकीर धरती पर वापस आ गया और सोच ही रहा था कि कौन सा पाप करूं?  कुछ समझ नहीं पा रहा था।  वह किसी गाँव में प्रवेश कर रहा था कि उसने देखा गाँव के बाहर ही एक मकान था।  मकान के बाहर ही एक कलि-कलूटी, बदसूरत औरत खड़ी थी।  उस फकीर के स्वास्थ्य को देखकर उसके अन्दर इच्छा पैदा हुई कि यह व्यक्ति अगर मेरी ओर आकर्षित हो जाये, मुझे प्रेम करे तो कितना अच्छा होगा।  उस औरत को देखकर फकीर ने सोचा कि इस बदसूरत औरत के साथ अगर प्रेमानुभव हो जाता है तो मेरा थोड़ा सा पाप हो जायेगा।  फिर मैं उसका प्रायश्चित कर लूँगा।  सुनहरा अवसर है, इसको स्वीकार कर लेते हैं।  वह फकीर उसके पास गया उसके आमंत्रण को स्वीकार किया और उस बदसूरत औरत के प्रति पूरा प्रेम व्यक्त किया।

जब प्रातः काल फकीर उससे विदा लेने गया, तो उसने सोचा कि मैंने एक पाप कर्म कर लिया है, अब मैं हाथ जोड़कर प्रायश्चित कर लूँगा और स्वर्ग का भागीदार बन जाऊँगा।  उस औरत ने कहा कि मेरी जिन्दगी में तुम पहले आदमी हो, जिसने मुझे पूरे प्राणों से प्रेम किया है।  मैं भगवान को साक्षी मानकर कहती हूँ कि तुमने जो पुण्य मेरे प्रति किया है, परमात्मा उस पुण्य का पुरस्कार तुम्हें जरूर देगा।  अब उस फकीर को काटो तो खून नहीं।  उसने कहा कि मैं तो पाप करने आया था और यह औरत कह रही है कि तुमने मेरे प्रति जो पुण्य किया है, परमात्मा उस पुण्य का पुरस्कार अवश्य देगा।

अब मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि यह कृत्य उसका पाप कृत्य था या पुण्य कृत्य?  बहुत मुश्किल है कह पाना कि कौन सा कृत्य पाप है, कौन सा कृत्य पुण्य है।  क्या शुभ है, क्या अशुभ है?  समाज नैतिकता के आधार पर व्यवस्था को संचालित करने के उद्देश्य से कुछ नियम बना लेता है, जिससे समाज की व्यवस्था चलती रहे।  इसीलिए बचपन से ही जब बच्चा इस धरती पर आता है, तो उसको डराया जाता है कि यह पाप है, यह पुण्य है।  यह शुभ है, यह अशुभ है, इसको करना चाहिए, यह नहीं करना चाहिए।  केवल इस उद्देश्य से कि जो नियम समाज के व्यवस्थापकों ने बनाये हैं, वे लागू रहें।  इससे अधिक उसका और कोई मूल्य नहीं है।  हर समाज अपनी व्यवस्था अपने ढंग से बनता है।  हमारे हिन्दू समाज में समाज के संस्थापकों ने ऐसा विधान किया कि कभी अपनी बहन के साथ, अपनी चचेरी बहन के साथ विवाह करने की कल्पना ही नहीं कर सकता है।  अगर कहीं कोई सोचे भी तो इसे बहुत बड़ा अनर्थ और बहुत बड़ा पाप घोषित कर दिया जायेगा।  लेकिन मुस्लमान भाइयों के यहाँ बड़े आराम से भाई बहन की शादी हो जाती है, उनके यहाँ यह पाप नहीं है।  समुदाय विशेष के घोषित कर देने से कोई कृत्य पाप या पुण्य नहीं बन जाया करता है, सत्य सारे ब्रम्हांड पर लागू होता है।  इसी तरह से कुछ देशों में जैसे कि नीदरलैंड में भाई प्रतीक्षा करता है कि मेरी सगी बहन हो जाये तो मैं उससे विवाह कर लूं, नहीं तो संपत्ति का अधिकार दूसरों को चला जाएगा।  बड़ी हीनता के भाव से देखा जाता है उस परिवार को जिस परिवार के बेटे को विवाह करने के लिए बहन नहीं है।  तो बहुत मुश्किल हैं पाप, पुण्य का तय कर पाना।  कोई कृत्य न पाप है, न कोई कृत्य पुण्य है।  बहुत कुछ करने वाले पर और करने की परिस्थिति पर निर्भर करता है।  कभी कभी आप पुण्य करना चाहते हैं तो वह पाप हो जाता है  और कभी कभी आप पाप करना चाहते हैं तो वह पुण्य हो जाता है।  फकीर जान बूझकर पाप करना चाहता था लेकिन कर नहीं पाया, वह पुण्य हो गया।  अतः आप होश में आकर कोई पाप नहीं कर सकते हैं।  मैं दूसरे शब्दों में कहूं कि अगर आप होश में हैं तो आपके द्वारा किसी प्रकार का पाप हो जाये यह संभव नहीं है।  जब भी आप अपना होश खो देते हैं किसी न किसी कारण से, तो जो कृत्य होता है वह पाप हो जाता है।  यह मैं पाप-पुण्य की परिभाषा दे रहा हूँ।  आप प्रयोग करके देखिये।  होश में रहकर आप किसी को गोली मारने की कोशिश करोगे तो कभी नहीं मार पाओगे।  आप होश में रहकर कभी चोरी करने की कोशिश करो चोरी नहीं कर पाओगे।

बुद्ध का एक परम शिष्य हुआ करता था आनंद।  बुद्ध शिक्षा देते थे कि स्त्रियों के पास जाने में सावधान रहना, नहीं तो तुम्हारे ध्यान की प्रक्रिया भंग हो जाएगी और तुम ध्यान से विमुक्त हो जाओगे।  आनंद ने एक दिन अपने गुरु से कहा कि गुरूजी – अगर ऐसी परिस्थितियां बन ही जाती हैं कि मुझे किसी स्त्री के पास रहना पड़े, तो आप बताएं कि विशेष परिस्थिति में औरत के पास ठहर जाऊं या न ठहरूं।  गौतम बुद्ध ने कहा, अगर ऐसी परिस्थिति आ जाती है तो तुम रुक जाना।  लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना कि उसकी ओर देखना नहीं, उसके रूप, सौन्दर्य को अपनी निगाहों में प्रवेश मत होने देना।  आनंद ने कहा, गुरूजी बहुत मुश्किल है।  अगर ठहरना ही पड़ा और कोई न कोई ऐसी परिस्थिति आ ही जाये कि देखना भी जरूरी हो जाये तो औरत को देखना है कि नहीं देखना है?  गुरूजी ने कहा, कोई बात नहीं देख लेना।  लेकिन एक शर्त है कि उसे स्पर्श मत करना।  शिष्य भी शिष्य होता है, जब ह्रदय खोल कर बैठता है, तो गुरु को भी संकट में डाल देता है।  मैं यही कहना चाहता हूँ कि आप जो भी करना चाहो करो, केवल होश में रहने की कला सीख लो, फिर पाप आपके हांथों से नहीं होगा, उसका करने वाला मैं रहूँगा, आप नहीं होंगे।  इसी प्रकार आप अपने सभी कर्मों को मुझे समर्पित कर दो और स्वयं आनंद और प्रेम से भर जाओ।

About अजय प्रताप सिंह

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Posted on सितम्बर 1, 2012, in गुरु वाणी, प्रवचन. Bookmark the permalink. 1 टिप्पणी.