पाप और पुण्य
पाप और पुण्य की मैं एक ही परिभाषा करता हूँ कि तुम जिस कृत्य में पूरी पूरी ऊर्जा के साथ उतर गए वो पुण्य कृत्य हो गया। अगर किसी को आपने पूरा-पूरा प्रेम किया तो वो पुण्य कृत्य हो गया। और अगर आपने अधूरा-अधूरा कार्य किया तो वह पाप कृत्य हो गया। सन्यासी मैं उसी को कहता हूँ जो प्रतिपल जी रहा है, वर्तमान में जी रहा है, पूरी ऊर्जा से जी रहा है। जहाँ है, जैसे है उसी में जी रहा है। लेकिन तुम हमेशा भविष्य में जीते हो, भविष्य में उलझे रहना तुम्हारे समस्त दुखों का कारण बन जाता है।
सद्गुरु साक्षी राम कृपाल जी
द गुरु पत्रिका, जुलाई २०१२ अंक
Posted on जुलाई 22, 2012, in क्रांति सन्देश, प्रवचन. Bookmark the permalink. 1 टिप्पणी.
sadguru ke vichhar samaj mein fail rahe pakhand ka ram ban upaya hein