हृदय खोलो, गुरु को जानो
एक ही सूत्र है जिससे सद्गुरु तुम्हें अपना सब कुछ देता चला जाता है। वह सूत्र है “सर्व धर्मान परित्यज्य माम एकम शरनम ब्रज” जो श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा था। सब धर्मों को छोड़ कर मेरी शरण में आ जा। तुम अपना सब कुछ सद्गुरु के चरणों में समर्पित कर दो। मानो करने वाला वही है, कराने वाला वही है, उसके हाथ हजार। मैं तो उसका हाथ भर हूँ, मैं तो बांस की पोली पोंगरी हूँ। जो सुर निकल रहा है, जो ध्वनि निकल रही है, जो संगीत निकल रहा है वह उसी का है। ऐसा सोचकर अपने समस्त कर्मों को सद्गुरु के चरणों में अर्पण कर दो। तुम एक शिशु की तरह बन जाओ। जो कुछ करेगा, तुम्हारा परमात्मा स्वरूप गुरु करेगा। किसी बात की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। ऐसा समर्पण तुम्हारे भीतर घटित हो जाय तो तुम्हें अपने गोद में वैसे ही ले लेता है जैसे माँ अपने बच्चे को अपनी गोद में ले लेती है। चाहे वह कुछ खाए चाहे न खाए, चाहे पीये या न पीये। किन्तु तुम्हारी पूरी देखभाल करेगा, तुम्हें खिलायेगा और खूब तंदुरुस्त करेगा और शांति व आनंद रूपी अनंत ऊर्जा व परमात्मा को तुम्हारी झोली में डाल देगा। तुम्हें साक्षात परमात्मा बना देगा।
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