व्यक्तित्व की सम्पूर्णता – प्रेम

अधिकतर दम्पतियों ने प्रेम की उस प्राण शक्ति का अनुभव ही नहीं किया, जिस प्रेम ऊर्जा का अनुभव करके तुलसीदास जी अँधेरी रात को सांप को रस्सी समझकर दीवार फांद गये थे।  प्राणों की ऊर्जा का आपने कभी अनुभव ही नहीं किया है।  प्रेम की तरंगें तो आपको न जाने क्या-क्या पार करा सकती हैं।  यदि आपको शांति और आनंद के रूप में परमात्मा चाहिए, तो केवल प्रेम में डूबने की कला सीख लो।  यही कला आपके व्यक्ति की तृप्ति का चरम बिंदु है।  बिना प्रेम के व्यक्तित्व की प्यास बुझती नहीं है।  हमारा सारा व्यक्तित्व – शरीर, प्राण, आत्मा बिना प्रेम के तृप्त नहीं होता।  और इनकी संतृप्ति प्रेम से होती है।  जब प्रेम आपके प्राणों में भरता है तभी आपके व्यक्तित्व में अद्भुत तृप्ति होती है।  जब तक आपको प्रेम नहीं मिलता तब तक आपका सम्पूर्ण व्यक्तित्व पूरा नहीं होता है।  हमेशा बेचैन और तड़पता हुआ रहता है।  आपको लगता है की आपको कुछ चाहिए किन्तु आप उसे बता ही नहीं पाते हो।  जानते ही नहीं कि क्या चाहिए?  उस अतृप्ति को पूरा करने के लिये आपको केवल प्रेम चाहिए।  वह प्रेम मिल जाये तो फिर आपके चेहरों पर अद्भुत आनंद छा जायेगा।  आपके प्राणों में ऊर्जा भर जायेगी।

जब आपको परिवार में प्रेम नहीं मिलता है, तो आप उसे बहार खोजते हो।  उस प्रेम को पाने की ललक ही आपको दूसरे परिवारों की ओर झाँकने को विवश करती है।  इसके परिणामस्वरुप समाज में व्यभिचार, तरह-तरह की कुरीतियाँ पैदा हो जाती हैं।  यह जो कुछ भी हमारे समाज में पैदा हो रहा है उसके लिये जिम्मेदार हैं – हम और हमारा परिवार क्योंकि हमारे परिवारों में प्रेम नहीं है।  तो उसकी तृप्ति के लिये पीछे के रास्ते से दूसरे द्वार निर्मित होते हैं।  इसीलिए समाज ने अपने स्वार्थ के लिये घोषित कर दिया कि तुम वेश्या का काम करो।  जो अतृप्त आये तुम्हारे पास उसे तुम स्वीकार करो।  मनु से लेकर उनके बाद के नीतिकारों ने वेश्या की संस्था को जिन्दा रखा।  लेकिन इस व्यवस्था को बनाते समय यह ध्यान नहीं दिया गया कि क्यों न प्रेम के अंकुर को ही परिवारों में उगाया जाए।  इसीलिए मैं जिस आध्यात्म की बात करना चाहता हूँ, वह इतना ही है कि आपके परिवार में, आपके ह्रदय में प्रेम के फूल खिलें और आपके चेहरे पर मुस्कान बिखरे।

एक दिन मैं डॉक्टरी आंकड़े देख रहा था, कम से कम चालीस प्रतिशत स्त्रियाँ हिस्टीरिया की शिकार हैं या उन्हें न्यूरोटिक प्रॉब्लम है।  इनका मूल कारण है – आपके परिवारों में प्रेम का न होना।  रोटी के बिना काम चल सकता है, मकान के बिना काम चल सकता है प्रेमियों! लेकिन प्रेम के बिना जीवन नहीं चल सकता।  जो जीवन आप प्रेम के बिना चला रहे हो वह जीवन नाममात्र का जीवन है। तरस आता है, उस जीवन को जीवन कहने में।  पुरुष विक्षिप्त है, पागल हुए घूम रहे हैं।  कोई शराब पीकर घूम रहा है, कोई गांजा पीकर घूम रहा है।  क्यों?  पागलपन चढ़ा है।  इस पागलपन का क्या परिणाम  है?  दुनिया में प्रति मिनट सैकड़ों आत्म-हत्याएं हो रही हैं।  और इस आत्महत्या का कारण क्या है?  आपके परिवारों में प्रेम का न होना।

इसका बुनियादी कारण है आपके दाम्पत्य जीवन में प्रेम का अभाव।  हमारे साधू-महात्माओं का ध्यान इस ओर नहीं जाता।  वह तरह-तरह के मन्त्र देते रहते हैं।  लेकिन जो मूल मन्त्र है जिसमें जादुई ताकत है, वह प्रेम का मन्त्र उसे कोई नहीं बताता।  उसी मन्त्र को मैं आपके प्राणों में भरता देखना चाहता हूँ।  मेरे प्रेमियों!  प्रेम का अर्थ होता है, एक-दूसरे में लीन हो जाना।  पत्नी और पति एक-दूसरे को प्रेम करते हैं, अर्थ होता है कि दोनों एक-दूसरे में लीन हो गये हैं।  शरीर के तल पर भी जो शारीरिक सम्बन्ध होता है पति और पत्नी का वह एक शरीर का दूसरे शरीर में लीन हो जाने का प्रयोग ही है, अभ्यास है, प्रतिफल है।  मन और आत्मा के तल पर भी एक-दूसरे में लीन हो जाना, एक-दूसरे में खो जाना।  आपने प्राणों को एक-दूसरे में समाहित कर देना।  यही होता है प्रेम हा अर्थ।  हमारे समाज में नारी और पुरुष के शारीरिक सम्बन्ध को गलत सम्बन्ध कहते हैं।  ये साधू-महात्माओं की देन है।  जबकि वह पुण्य-पवित्र, परमात्मा का सम्बन्ध है।  उन्होंने आपके मन में प्रेम के प्रति अपराध का जो भाव भर दिया यही मूल कारण है कि आपके जीवन से प्रेम का अंत होता हा रहा है।  आपके मन में काम और प्रेम के प्रति अपराध का भाव भर गया।  और जब आपके भीतर यह बात आ जाए कि हम पत्नी के साथ अपराध कर रहे हैं, तो यह अपराध का भाव ही पाप हो जाया करता है।  प्रेम के कारण जो सुख आपको मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पाया, क्योंकि आपके भीतर प्रेम के प्रति अपराध का भाव पीढ़ियों से भरा हुआ है।

पहली बात धार्मिकता के लिये जो सबसे जरूरी है कि आपके भीतर सहस होना चाहिए।  जितनी हिम्मत से मैं साधू-महात्माओं की बातों का खंडन करता हूँ इतना साहस और हिम्मत आपके भीतर भी आनी चाहिए।  तभी आपके भीतर भी प्रेम के प्रति आनंद और परमात्मा का भाव पैदा हो सकेगा।  जब तक प्रेम के प्रति आनंद और परमात्मा का भाव पैदा नहीं होगा तब तक प्रेम का अनुभव कभी नहीं कर सकते हो।  जो क्षण-प्रतिक्षण घबराए हुए रहते हैं, अपराध भाव से भरकर प्रेम करते हैं तो यह प्रेम झूठा बन जाता है।  यह तुम्हें प्रेम का सुख नहीं दे पाता है।  इसीलिए मैं सभी माताओं और पिताओं से आह्वान करता हूँ कि अपने बच्चों को प्रेम का आनंद, प्रेम की सुभाष लेने का अवसर दो।  आप उन्हें परमात्मा की मंजिल तक एक कदम बढ़ने का अवसर दो।  आने वाली पीढ़ी आपका स्वागत करने को तैयार है।  वह परमात्मा के रास्ते पर प्रेम के द्वारा चलने को तत्पर है।  लेकिन अवसर प्रदान करने का दायित्व आपका है।

थोड़ी सी हिम्मत करो।  थोड़ा सा आगे कदम बढाओ।  जो गलत सिद्ध हो जाए उसे उतर फेंकने की हिम्मत करो।  मैं तो कहता हूँ कि अगर प्रेम पाप है, काम पाप है, तो सारा जीवन ही पाप हो गया।  परमात्मा ने जिस काम को जीवन की शुरुआत का बिंदु बनाया, वह काम, वह प्रेम का अद्भुत क्षण पाप कैसे हो सकता है।  वह पाप हो ही नहीं सकता।  वह तो परमात्मा की सृजन शक्ति है।  वह परमात्मा की अद्भुत ऊर्जा है जो पति और पत्नियों के प्राणों में काम ऊर्जा के रूप में आकर सृजन करती है।  और वही परमात्मा एक नए जीवन का विकास करता है।  उसके प्रति आप जितना ही आनंद भाव से भरोगे, वह प्रेम उतना ही धर्म बन जायेगा, वह प्रेम उतना ही आध्यात्म बन जायेगा।  लेकिन आपके जीवन में प्रेम नहीं रहा इसलिए वह काम पाप हो गया।  जिस चीज में भी प्रेम न हो वह पाप हो जाता है प्रेमियों!  कोई भी काम सम्बन्ध जिसमें प्रेम न हो वह पाप हो जाता है।  इसीलिए मैं कहता हूँ काम का सम्बन्ध, पति-पत्नियों का सम्बन्ध, युवक और युवती का सम्बन्ध परमात्मा का सम्बन्ध है।  शर्त इतनी ही है कि उस सम्बन्ध में प्रेम अवश्य हो।  और प्रेम के बिना जो भी काम सम्बन्ध होता है वह पाप बन जाता है।  उसमें फिर परमात्मा का आविर्भाव नहीं होता है।  इसीलिए पति-पत्नी के बीच जो सम्बन्ध है अगर उसमें प्रेम नहीं है, तो वह काम सम्बन्ध, शारीरिक सम्बन्ध भी पाप बन जाया करता है और जो बच्चे पैदा होते हैं।  वे भी पाप की संतानें होती हैं।  इसीलिए दूसरी प्रार्थना आपसे यह करता हूँ कि आप इस बात की परवाह करें कि आपकी संतानें पाप कि संतानें पैदा न हों, आपकी संतानें प्रेम की संतानें हों।  वह प्रेम ही आपकी संतानों के जीवन में शांति व आनंद के रूप में बरसे।  परमात्मा बनकर आपके आँगन में नाच सकता है।

Advertisement

एक उत्तर दें

Please log in using one of these methods to post your comment:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s