मौज में जियो

एक फकीर था जिसका झोंपड़ा सम्राट के राजमहल के पास ही था।  नगर में उस फकीर की बड़ी ख्याति थी।  बादशाह भी उसके चरणों में सिर झुकाता था।  एक दिन बादशाह ने उस फकीर से कहा कि तुम मेरे राजमहल में रहो।  तुम्हें वही भोग उपलब्ध कराया जाएगा जो राजा को उपलब्ध होता है।  फकीर राजा के साथ चल दिया।  धीरे-धीरे कुछ दिन बीतने के बाद बादशाह के मन में यह संदेह उठने लगा कि यह कैसा फकीर है?  यह तो ऐसे रोब से रहता है जैसे कि असली राजा यही हो गया है।  यह तो भोग में रम गया है।  राजा के चित्त में संदेह आ गया।  भय पैदा हो गया कि कहीं वह गलत आदमी को पकड़कर नहीं ले आया है?  बादशाह अपने इस संदेह को रोक नहीं पाया।  बादशाह ने फकीर से कहा – मेरे में और तुझ में क्या फर्क रह गया है?  तू भी तो मेरी ही तरह रहने लगा है।  सारी सुख-सुविधाओं और राज-वैभव का भोग भी मेरी तरह ही कर रहा है।  मेरे साथ तो झंझटें भी हैं।  तू तो ठाट से सोने-चाँदी के बर्तन में खाता है और मुलायम बिस्तर पर सोता है।  असली राजा तो तू ही हो गया है।

सम्राट ने फकीर के सामने यह बड़ा शक्तिशाली प्रश्न खड़ा कर दिया।  फकीर ने कहा, मेरे मित्र अगर फर्क समझना है तो हम लोग इस राज भवन से थोड़ा बाहर चलते हैं।  वहाँ चलते हुए मैं तुम्हें यह फर्क समझा दूँगा।  बादशाह पीछे-पीछे चलने लगा।  बातें करते हुए वे दोनों बहुत दूर निकाल गए।  बादशाह ने कहा कि अब तो मेरे राज्य की सीमा भी समाप्त हो गई।  कृपया अब तो उत्तर दें।  फकीर कहता है कि थोड़ी दूर और चलो।  थोड़ी देर तक और चलने के बाद बादशाह कहता है अब बहुत हो गया।  अब सहा नहीं जाता है।  मेरा सारा राज-पाट, परिवार, सब कुछ छूटता जा रहा है और तुम कहते हो कि थोड़ा और चलो।  फकीर बोला – बादशाह हमारे और तुम्हारे में बस यही अंतर है।  तुम्हारे लिए शाम ढल जाती है।  लेकिन मेरे लिए शाम कहीं ढलती नहीं।  मैं राज भवन में राजा की तरह रह सकता हूँ और फकीर की झोंपड़ी में भी बादशाह की तरह रह सकता हूँ।  मेरी मस्ती, मेरी मौज और मेरे आनंद को देखकर, बादशाह तुम्हारी लार टपकती थी।  इसीलिए तू मुझे कंधे पर बिठाकर राजभवन में ले गया था।  जब मैं राजभवन में था तब भी मेरी मस्ती थी, मेरी मौज थी और मेरा अपना आनंद था।  उसे कोई नहीं छीन सकता था।  चाहे मैं राजमहल में रहूँ या फिर अपनी झोंपड़ी में।  इसी को कहते हैं बीत रागी।  यानी राग और विराग से परे।  जो मिल जाए उसी में खुश।  मैं सारा सुख भोगूँ या सारे सुखों से मुक्त भी हो जाऊँ, उनसे उलझूँ नहीं।  तो भी उसी मौज मस्ती में रहूँगा।  मैं तो सद्गुरु के आशीष से आपके जीवन को बदलने की चेष्टा कर रहा हूँ।  जिस दिन से आपका जीवन बदलना शुरू हो गया, उसी दिन से सद्गुरु के चरणों में मेरी सबसे बड़ी श्रद्धा और सेवा का फल अर्पित होगा।

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