ब्रम्हा का अर्थ होता है – विस्तार होना। जो निरंतर बढ़ता हुआ हो। इस ब्रम्हांड को ब्रम्हा से इसलिए जोड़ा गया कि यह ब्रम्हांड नित्य प्रति विस्तृत होता जा रहा है, निरंतर फैलता जा रहा है। आज के वैज्ञानिकों का भी मानना है, यह ब्रम्हांड निरंतर विस्तृत होता जा रहा है, जब आपका संकल्प प्रगाढ़ होता है, आपका मनोबल ऊंचा होता है, जब आप आत्मसम्मान के भाव से भरे रहते हैं, तो आपका सूक्ष्म शरीर भी विस्तीर्ण होता है, बढ़ता है और आपके शरीर को भी व्याप्त किये रहता है। ऐसे किसी भी व्यक्ति के पास जायें, तो आप उससे प्रभावित होते हैं। संत, महात्मा और महापुरुषों के पास आप जाते हैं, तो उनके जैसा ही सोचने लगते हैं और उनके जैसे ही होने लगते हैं। क्योंकि उनके भीतर का सूक्ष्म शरीर उनके मनोबल और संकल्पशक्ति के कारण इतना विस्तीर्ण होता जाता है कि उनके शरीर के बाहर भी उसका विस्तार परिलक्षित होने लगता है। वही उस व्यक्ति की आभा होती है, वही उस व्यक्ति का प्रकाशपुंज होता है। वह आभा, और वह प्रकाश पुंज जो भीतर से फैलता हुआ बाहर को आप्लावित करता है, आपके भीतर आता है तो आप भी वैसा ही सोचने लगते हैं।
आपके भीतर संकल्प की इतनी अद्भुत व प्रचंड शक्ति है कि आप उसको विस्तीर्ण करने का, उसको दृढ करने का प्रयोग करें तो आपको अद्भुत अनुभव होंगे। दुराचारी व्यक्ति का संकल्प भी बहुत अधिक होता है। वह अपने प्रति अपराध भाव से नहीं भरता है। वह चोरी कर रहा है, डकैती कर रहा है, दुराचार कर रहा है। उसके प्रति अपराध भाव नहीं होता है। जैसे कोई वेश्या, वेश्यावृत्ति को अपना धर्म मानती है। उसके प्रति वह अपराध-भाव से नहीं भरती है। जब किसी का आत्मबोध, आत्म्संकल्प प्रगाढ़ होता है तो सूक्ष्म शरीर आपके शरीर को व्याप्त किये रहता है, आपके शरीर में फैलता रहता है। फिर किसी दूसरी आत्मा को जगह नहीं मिलती है कि वह आपके शरीर में प्रवेश कर जायें, आपका सूक्ष्म शरीर विस्तीर्ण है, उसका स्कोप ही नहीं है, उसके अवसर ही नहीं मिलता कि प्रेत आत्मा या कोई दूसरी बुरी आत्मा आपके शरीर में प्रवेश कर जाये, लेकिन अगर आपकी आत्मा संकल्पहीन है, आप अपने प्रति भी अपराध भाव से भरे हुए हैं, हीनता-दीनता के भाव से भरे हैं, क्षण प्रतिक्षण आप आत्मग्लानि से जल रहे हैं, किसी न किसी प्रकार के भय से भरे हैं, तो आपके भीतर जो सूक्ष्म शरीर है, जो प्राण शरीर है वह सिकुड़ता जाता है, तो आपके शरीर में खली जगह बन जाती है और उस खाली जगह का बनना बाहर की आत्माओं को, बुरी आत्माओं को अपने शरीर में प्रवेश करने का आमंत्रण देने के समान है। जब आपका सूक्ष्म शरीर दीनता से, हीनता के भाव से, आत्मग्लानि के भाव से सिकुड़ता है तब ये ब्रम्हांड में घूमती हुई आत्माएं आपके शरीर में प्रवेश करने लगती हैं।
जो असाधारण लोगों की अच्छी आत्माएं हैं वह किसी शरीर की तलाश में नहीं रहती हैं कि उनमें प्रवेश करें, लेकिन बुरी आत्माएं और प्रेत आत्माएं ऐसे शरीर की तलाश करती रहती हैं। इसका कारण है कि जो असाधारण अच्छी आत्माएं रहती हैं वे शरीर के सुखों और इन्द्रियों के सुखों को भोगने की कामना से मुक्त रहती हैं। लेकिन बुरी आत्माएं जो जीवन भर बुराइयों को करते रहे और इन्द्रियों का सुख भोगने की लिप्सा, जिनके ह्रदय में बैठी रहती है अगर अकस्तमात ही मर जाती हैं तो वह इन्द्रिय सुख भोगने के उद्देश्य से शरीरों की तलाश करती रहती हैं। जब ऐसा शरीर मिल जाता है जिसके भीतर सूक्ष्म शरीर सिकुड़ा हुआ है, जिनका मनोबल गिरा हुआ है, तो उन्हें प्रवेश करने का अवसर मिल जाता है।
ऐसी आत्माएं इन्द्रियों के सुखों को भोगने के लिए तड़पती रहती हैं और वही तड़प लिए हुए आपके शरीर में प्रवेश करती हैं। आपके शरीर के माध्यम से वह समस्त इन्द्रियों के सुखों को चखने की चेष्ठा करती हैं। जहाँ कमजोर संकल्प वाले लोग मिल जाते हैं वहां पर उनको अवसर मिल जाता है। आपने देखा होगा की स्त्रियों के शरीर में इस प्रकार की बुरी आत्माओं का प्रवेश अधिक होता है। पुरुषों की तुलना में प्रेत बाधाओं से स्त्रियाँ ज्यादा ग्रसित होती हैं। इसका सबसे प्रधान कारण यही रहा है कि स्त्रियों को हम अब तक संकल्पवान नहीं बना पाए। हमारी संस्कृति ने, समाज ने उनको दीन हीन बना कर रखा और आज भी स्त्रियाँ बड़े पैमाने पर गुलामी का ही जीवन बिता रही हैं। ऐसे संस्कार पड़ते गए कि उनकी आत्मा आज तक संकल्पवान नहीं हो सकी। दिन भर में ससुराल वालों की सौ बातें सुनती हैं। इससे उनके चित्त में इतनी हीनता, निराशा और संकल्प हीनता का भाव पैदा हो जाता है कि वह भीतर ही भीतर डरी-डरी सी रहने लगती हैं, भय से ग्रसित हो जाती हैं। इतना भय से ग्रसित हो जाती हैं कि उनकी संकल्पशक्ति सामान्य से क्षीण हो जाती है। आपने प्रति ही वह अपराध के भाव से भर जाती हैं। उन्हें लगता है कि जैसे वह गलत जीवन जी रही हैं, उनके ह्रदय में संकल्प का अभाव हो जाता है। यही कारण है कि इस प्रकार की पीड़ाओं से सौ में से नब्बे स्त्रियाँ प्रभावित हैं। उनके शरीर में इन बुरी आत्माओं का प्रवेश करना अत्यंत आसान हो जाता है।
ये जो बुरी प्रेत आत्माएं आपके शरीर में प्रवेश करती हैं इनका सबसे मुख्य उद्देश्य होता है कि वह विभिन्न इन्द्रियों के रसों को आपके शरीर के माध्यम से भोगें। जब वे शरीर में प्रवेश कर जाती हैं, तो विकृत कामुकता का रूप धारण कर लेती हैं। हमारे तमाम भाई-बहन मुझसे कहते हैं कि हम इस प्रकार की पीड़ा से ग्रसित हैं। सन्देश यही है कि आप अपने प्रति सम्मान भाव से भरो। आपके भीतर अद्भुत ऊर्जा है। आप हीनता, निराशा, भय और संकल्प हीनता के भाव से भरे रहते हो। अपने को मुक्त कर दो इन सलाखों से। दुनिया की बड़ी से बड़ी बुरी से बुरी आत्मा भी आपके अन्दर प्रवेश नहीं कर सकती हैं।
aati uttam utkrishtha,adbhud bate jo hamne kabh nahi suni.such word by guruji which he has spread no body has done ,it is small but bigger then bigger,
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Rudra Dubey
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Rudra Dubey
पिंगबैक: भूत, प्रेत और भय | साइंस ऑफ़ डिवाइन लिविंग