झूठे धर्मों को विदा करो
जैसे अभी-अभी रोहताश बोल रहा था कि थॉमस एडिसन ने बिजली का अविष्कार किया था और अब देखो, अब मजे से बिजली का आनंद ले रहे हैं। थॉमस एडिसन को बिजली का अविष्कार करने में ३० वर्ष लग गए, तीस वर्ष उन्होंने गणित लगाया, ये प्रयोग किया, वो प्रयोग किया, फलाना किया, ढमाका किया। तब तीस साल में जाकर उनको सिद्धि मिली और उन्होंने अविष्कार किया बिजली का। लेकिन अब बिजली का आनंद लेने के लिए आपको या रोहताश तो ३० साल साधना करने कि जरूरत नहीं है। अब तो बल्ब लाओ इलेक्ट्रिसिटी से तुरंत बल्ब जल जायेगा। अब जरूरत नहीं है ३० साल व्यय करके खुद अविष्कार करें बिजली का। इतने लोग “एनलाईटेंस” को, बुद्धत्व को प्राप्त हुए। ज्ञान महावीर को मिला, कृष्ण को मिला, क्राइस्ट को मिला, स्वामी सुदार्शनाचार्य को मिला। हजार-हजार लोगों को मिला लेकिन उन्होंने रास्ता साफ़ कर दिया अब १२ साल कि भी जरूरत नहीं है। अब तो १२ दिन क्या, १२ मिनट में ही बुद्धत्व प्राप्त हो सकता है, अब तो बिजली जलाने और स्विच ऑन करने भर कि जरूरत है। स्विच ऑन करो और बिजली का आनंद लो।
सद्गुरु वही है जो तुम्हे सब कुछ हुए विधि बता दे और तुम्हारा सद्गुरु के प्रति प्रेम हो जाये, कहते हैं, प्रेम क्यों कहते हैं, प्रेम कि बात क्यों कहते हैं? अरे जिससे तुम्हें प्रेम होता है, उसकी बात तुम्हारे दिल में कहीं गहरे पहुँच जाती है, दिल को छूने लगती है। तो अगर सद्गुरु से प्रेम होगा तो सद्गुरु की गहराई से कोई बात निकलेगी तो तुम्हारे प्राणों में फ़ैल जायेगी। तुम्हारे जीवन का अंग बन जायेगी। अब बारह वर्ष और तीस वर्ष तपस्या की जरूरत नहीं है आपको। हँसते, खेलते, नाचते हुए ही बुद्धत्व की प्राप्ति की जा सकती है और मैं तो आपसे कह रहा हूँ आप केवल यही प्रयोग करिये जब आप कुछ नहीं कर रहे हैं तो आती और जाती हुई सांसों को देखिये। सांस-सांस गहरी हो जायेगी। अगर आप कुछ कर रहे हैं तो जिस समय जो कर रहे है उस समय उसी काम में डूब जायें।
एक कहानी जो मैं हमेशा सुना देता हूँ कि मुरारीलाल जो कि मेरे शिष्य हैं उनकी दशा तुम्हारे जैसी है, तुम भी कोई काम कभी पूरा-पूरा नहीं करते हो, कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना, आधा यहाँ, आधा वहां, खंड-खंड में बंटे हुए हो, कहते कुछ को करते कुछ हो, आधा मन यहाँ आधा मन वहां, बिखरे पड़े हो, टूटे पड़े हो, तुम खाना खा रहे हो तो तुम खाना खा ही नहीं सकते हो अगर सामने टी.वी. न चल रहा हो या बीवी बात करने के लिए न हो या और कुछ न चल रहा हो तो कुछ लोग तो मैगजीन ही हाथ में ले लेते हैं कुछ अख़बार ही हाथ में ले लेते हैं। कुछ उपन्यास ही पढने बैठ जाते हैं, इतने बंटे हो, बेचैन आत्मा हो, तो मुरारीलाल कि पत्नी भागी-भागी आयी मेरे पास कहने लगी, ‘गुरूजी! रक्षा करो, प्राण बचाओ। मैंने कहा क्या हुआ उन्होंने कहा गुरूजी! आज लड़ाई हो गयी, मैंने कहा वह तो रोज होती है तेरी। उसने कहा गुरूजी! आज मामला ज्यादा गंभीर है, आज मामला ज्यादा उल्टा पड़ गया, मैंने कहा क्या हुए, उसने बताया कि उन्होंने आत्म हत्या का फैसला कर लिया है, खुद मेज पर खड़े हो गए हैं और फांसी कि रस्सी छत में बांध दी है जल्दी कीजिये नहीं तो फांसी के फंदे का दूसरा सिरा उनके गले में पड़ जायेगा। मैंने कहा तू परेशान मत हो मैं उसको जानता हूँ, वो कोई काम पूरा-पूरा नहीं कर पाया है यह काम भी इतना आसान नहीं है कि इतना जल्दी वो ये काम पूरा कर लेगा, उसने कहा आप “लाइटली” मत लीजिये गुरूजी, मामला ज्यादा गंभीर है। उसने मुझे ज्यादा मजबूर कर दिया कि मैं जाऊं ही उसके साथ। तुरंत गया मैं, देखता हूँ बात तो सच ही थी। मुरारीलाल ने सारा इंतजाम कर दिया था खुद मेज पर खड़े हो गए, कहने लगे, गुरूजी! आज बस जाने दीजिये। मैंने देखा कि जो रस्सी उन्होंने पंखे से बांधी थी उसका दूसरा अपनी कमर में बांधा हुआ था। मैंने पूछा कि उस्ताद क्या इरादा है, उसने कहा गुरूजी! इस बार आप बीच में नहीं पड़ेंगे, मैंने आत्महत्या का फैसला कर ही लिया है। मैंने कहा, तो फांसी का फंदा गले में लगाओ, कमर में फंदा लगाकर आजतक कोई नहीं मर पाया। उसने कहा, गुरूजी! आप क्या मुझे इतना बेवक़ूफ़ समझते हैं, मैंने पहले गले में ही लगाया था, हमने कहा फिर? उसने कहा गुरूजी! बड़ी बेचैनी महसूस हो रही थी इसलिए मैंने कमर में बांध लिया। यानि मरना भी चाहते हो और फांसी का फंदा कमर में बांधते हो, न मरना चाहते हो, न जीना चाहते हो, न हँसना चाहते हो, न रोना चाहते हो। अरे मैं कहता हूँ रोना चाहते हो तो रोओ, हँसना चाहते हो तो हंसो। जो चाहते हो उसमें पूरा-पूरा डूब जाओ। सांस अपने आप लम्बी और गहरी हो जायेगी, तो जब तक आप संजीवनी क्रिया नहीं करते हैं, आपके बच्चे महामेधा क्रिया नहीं करते हैं, ये अभ्यास आप करें सांस को लम्बी और गहरी करने का, ध्यान कि भूमिका है ये भूमिका बन जाये तो ध्यान करना नहीं पड़ता है, ध्यान अपने आप होने लगता है। आनंद अपने आप बरसने लगता है, मैं किसी प्रकार की ध्यान की क्रिया का पक्षपाती नहीं हूँ की आप एक घंटा टीकर आसन पर बैठ कर ध्यान करें, मैं ऐसे ध्यान का पक्षपाती नहीं हूँ, मैं पूरा जीवन ही ध्यानमे करना चाहता हूँ। ” आई ऍम इन फेवर ऑफ़ ए मेडीटेटिव लाइफ, नॉट इन फेवर ऑफ़ मेडीटेसन”। आपकी ही मेडीटेसन हो जायेगी, आपके लिए जीवन खेल बन जाये, जब आप लम्बी गहरी सांस लेंगे तो एक और परिणाम आपकी दृष्टि में दृष्टिगोचर होगा, आप जिंदगी को खेल की तरह लेने लगेंगे, अरे जिंदगी है क्या – सिर्फ खेल है, आना है, जाना है, पानी का बुलबुला। हम लोगों का अहंकार इतना बड़ा है जैसे समुन्द्र देखा होगा अपने तो आप वहां खड़े हो जायें, देखें कि पानी के बुलबुले उठते हैं छोटे-बड़े और सब फूटते रहते हैं और वहां पर कोई कहे कि मैं छोटा बुलबुला हूँ और दुखी रहे और दूसरा कहे कि मैं बड़ा हूँ, तुम्हारी दशा भी यही है। हर आदमी कोई छोटा बुलबुला है और कोई बड़ा बुलबुला, अरे फूट तुमको जाना ही है। अभी बने, अभी फूट गए, कब फूट गए, किस क्षण फूट गए, अरे बने बुलबुले तो फूटोगे ही, तो जब तक तुम हो तब तक चाहे छोटे बुलबुले हो, चाहे बड़े बुलबुले हो, बादशाह कि तरह जियो, बादशाह कि तरह रहो। आनंद में रहो जिंदगी सिर्फ खेल है। जिंदगी अगर खेल बना लो तो ध्यान आ गया। ध्यान के लिए कुछ करने की जरूरत नहीं, ध्यान अपने आप प्रकट हो जाता है।
सर्वोत्तम साइड के लिए साधुवाद
जय जय
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