झूठे धर्मों को विदा करो
मैं आपसे कहना चाहता हूँ की मनुष्यता का इतिहास मैंने बहुत गहराई से बहुत गंभीरता से अनुभव किया है। इस पृथ्वी पर हर ढाई हजार साल में अध्यात्मिक क्रांति का अवसर आता है जब मनुष्यता नयी करवट लेती है, नया जन्म लेती है। और भगवान बुद्ध को गए ढाई हजार साल बीत गए भगवान बुद्ध और महावीर के समय में अध्यात्मिक क्रांति हुई, बहुत बड़ी हिंसा इस पृथ्वी पर फैलने से रुकी। अपने सुना होगा अशोक-कलिंग जैसा युद्ध भगवान बुद्ध के प्रवाह से रुक गया। अपने सुना होगा उसके ढाई हजार साल पहले भगवान कृष्ण ने अध्यात्मिक क्रांति पैदा की। ढाई हजार साल और ढाई हजार साल बीत चुके हैं अब वक्त आ गया है अध्यात्मिक क्रांति का। एक अवसर है जब नयी मनुष्यता पैदा हो सके इसलिए साई-डिवाइन का एक ही उद्देश्य है-नए मनुष्य को पैदा करना। कैसा मनुष्य, जिसका जीवन हँसता हुआ हो, “हँसता हुआ जीवन”। मेरा लक्ष्य ही है “पृथ्वी पर हँसता हुआ जीवन” ऐसा जीवन जो भीतर से शांति और आनंद से भरा हो और भौतिक दृष्टि से आर्थिक समृद्धि की ऊँचाई पर भी हो और इसके लिए जरूरी है बचपन से ही ध्यान और प्रेम की दीक्षा तथा आधुनिक ज्ञान व विज्ञान की शिक्षा। बचपन से ही ध्यान और प्रेम की दीक्षा के पीछे मेरा उद्देश्य है जो झुग्गी-झोपड़ी शिक्षा सेवा मिशन के माध्यम से शुरू हो रहा है झुग्गी-झोपड़ी शिक्षा सेवा मिशन झुग्गी के बच्चों की सेवा करने के उद्देश्य से नहीं किया गया है। साफ़ बता देना चाहता हूँ मैं कोई क्रिश्चियन मिशनरी जैसा सेवक नहीं हूँ मैं सेवा के बहुत खिलाफ हूँ, मैं सेवा का बहुत पक्ष में नहीं हूँ, मैं आत्म-सेवा का सन्देश देता हूँ, पहले तुम अपनी सेवा करो, धर्म परम स्वार्थ है, पहले तुम अपने को मजबूत करो। अपने को आनंद से भरो, तुम आनंद से भर जाओगे तो अपने जीवन में अपने आप सेवक बन जाओगे।
अपने आप तुम किसी दूसरे को दुखी देख नहीं पाओगे। मैं सेवा के भाव से झुग्गी-झोपड़ी शिक्षा सेवा मिशन नहीं कर रहा हूँ, मेरा ह्रदय आनंदित होता है उन बच्चों को देख कर जो आपके सामने नृत्य कर रहे थे, इन्होंने नाट्य प्रस्तुति की, मेरा एक-एक रोम उस समय पुलकित हो रहा था। सेवा का उद्देश्य है मेरा एक ऐसी प्रयोगशाला बनाने का, एक संकल्प ले रहा हूँ इस परिसर में, ये जो परिसर पिर्मित हुआ है साई-डिवाइन पब्लिक स्कूल का जहाँ पर मैं ध्यान के माध्यम से ध्यान व प्रेम की दीक्षा देना चाहता हूँ बच्चों को। आतंकवाद का यदि अंत करना है पृथ्वी से तो महा मेधा क्रिया के माध्यम से ध्यान की दीक्षा और बच्चों के माँ-बाप को संजीवनी क्रिया के माध्यम से ध्यान की दीक्षा। आपके लिए ध्यान की विधि दूसरी है, आपके बच्चों के लिए ध्यान की विधि दूसरी है, उनकी विधि आपके लिए उपयोगी नहीं है इसलिए आप संजीवनी क्रिया का अभ्यास करें और अपनी संतानों को महामेधा क्रिया का अभ्यास कराएँ।
संजीवनी क्रिया के माध्यम से मैं ध्यान का विराट आन्दोलन चलाना चाहता हूँ और उस ध्यान के विराट आन्दोलन का उद्देश्य है मनुष्य के अवचेतन मन की सफाई, मनुष्य के अवचेतन मन को स्वच्छ करना, सशक्त करना, जहाँ मनुष्य परम विश्राम में हो सके, जहाँ मनुष्य परम शांति में जी सके, जहाँ मनुष्य आनंद के अनुभव से गुजर सके। आप सोचते होंगे धन, पद, प्रतिष्ठा का मार्ग हाथ लग जाये तो मनुष्य खुश हो जायेगा। संत कबीर रोज कपड़ा बुनते थे, बेचते थे तो एक दिन का काम चलता था फिर अगले दिन के लिए वही कपड़ा बुनना, बेचना और भोजन का इन्तजाम होता था लेकिन “अमी झरत विकसत कमल”। कहा है कि जैसे वे बैठते थे कि जैसे अमृत झरता था उनके भीतर-भीतर। बाहर से कोई आजतक आनंदित नहीं हो सका। बाहर से कोई आनंद आ ही नहीं सकता। बाहर से आनंद का कोई रास्ता है ही नहीं। आनंद तो आपके भीतर ही प्रकट होता है। उसकी कुंजी तुम्हारे भीतर है उसका टला तुम्हारे भीतर है, कुंजी तुम्हें ही लगनी पड़ती है, टला तुम्हें ही खोलना पड़ता है। अगर सारी पृथ्वी तुम्हें मिल जाये तो जरूरी नहीं कि तुम आनंदित हो जाओ।
सर्वोत्तम साइड के लिए साधुवाद
जय जय
पिंगबैक: समझ ही समाधान है | साइंस ऑफ़ डिवाइन लिविंग