झूठे धर्मों को विदा करो
अब तीसरा विश्व युद्ध असंभव हो गया है हो ही नहीं सकता है और यदि तीसरा विश्व युद्ध नहीं होगा तो आदमी की जो हिंसा की वृत्ति है क्रोध, दमन जितना भीतर पड़ा हुआ है कैसे निकलेगा? वो आतंकवाद के रूप में निकलेगा। इसकी निकासी की व्यवस्था करनी पड़ेगी। निकासी का विज्ञान सद्गुरु देता है। सद्गुरु देता है निकासी का विज्ञान – जो तुम्हारे भीतर कचरा भरा हुआ है, अब तो वो हालात हो गए हैं कि तुम्हें अब बहाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। जज के सामने एक आदमी पेश किया गया, उस आदमी से पूछा गया कि किस कारण अपने इस आदमी कि हत्या की। उसने एक अपरिचित आदमी की समुन्द्र तट पर हत्या कर दी थी, रिवाल्वर निकाला और हत्या कर दी, गोली चलाकर मार दिया अपरिचित को, कोई लेना-देना नहीं, निकली रिवाल्वर गोली चलाकर मार दी।
जज ने पूछा – क्यों चलाई गोली? उसने कहा की इतने दिनों से मेरा जीवन नीरस था कोई उत्साह नहीं, कोई जोखिम नहीं, कुछ करने को नहीं, जिंदगी बड़ी उदास-निराश चली जा रही थी और हत्या करने के बाद मैं बड़ा तृप्त अनुभव कर रहा हूँ। आज दुनिया के सारे अख़बारों में मेरी फोटो छपी है और मेरा नाम है, और मैं बहुत आनंदित हूँ कि आज मुझे प्रसिद्धि मिली पूरे संसार में। कोई कारण नहीं, कोई बहाना नहीं। ऐसा नहीं कि कोई बहाना मिल जायेगा और आप मार-काट करने लगेंगे। उपाय क्या है बस थोड़े ही शब्दों में मैं जो मेरे प्राणों से बात पैदा होती है, जिसे मैंने साई डिवाइन का मूल मन्त्र माना है, जो मेरी समझ में है वो कहती है कि आज आतंकवाद बमों में नहीं है, तुम्हारे हाथों में नहीं है, तुम्हारे हथियारों में नहीं है, आतंकवाद तुम्हारे अवचेतन मन में भरा पड़ा है। तुम्हारे अवचेतन मन में कचरा भरा पड़ा है उस अवचेतन मन के तट पर सफाई कि जरूरत है। अगर तुम्हारे अवचेतन मन को साफ़ कर दिया जाये तो तुम्हारे अन्दर हिंसा की, आक्रोश की, क्रोध की, दमन की जो वृत्तियाँ तुम्हारे भीतर पड़ी हैं वो शांत हो जाएँगी। तुम अशांत हो, बेचैन हो, उपद्रव में हो, २४ घंटे भाग रहे हो, आनंद से रोटी खाकर सो नहीं सकते हो, बीमार हो, ऐसा नहीं है कि तुम्हारे पास रोटी, कपड़ा, मकान नहीं है; तुम जानते हो रोटी, कपड़ा, मकान है फिर भी तुम रोटी आनंद से नहीं खा पाते हो, क्यों? क्योंकि तुम्हारे अवचेतन मन में कचरा भरा हुआ है उस कचरे कि सफाई करना बेहद जरूरी है।
अवचेतन तल पर तुम्हें स्वस्थ करना जरूरी है और मैं तुमसे बता देना चाहता हूँ कि सत्य बड़ा सरल होता है। अगर धर्म पूछा जाये तो धर्म इतना सरल है कि एक-एक अनपढ़ आदमी भी उसको समझ सकता है लेकिन पंडितजी लोगों ने, पुरोहितों ने, मौलवियों ने, इन लोगों ने इसको जटिल कर दिया, कठिन कर दिया, अगर वे कठिन न करते तो उनका धंधा नहीं चलता और धंधा नहीं चलेगा तो बेरोजगार हो जायेंगे। ५० लाख से भी अधिक सन्यासी दूसरों कि कमाई पर पल रहे हैं, छप्पन भोग लगते हैं भगवानजी को और खाते हैं फिर भी पता ही नहीं है कि भगवान जी हैं भी या नहीं। भगवान जी के नाम पर छप्पन भोग खाए जा रहे हैं ५० लाख से भी अधिक सन्यासी, आज से दस साल पहले ५० लाख थे, अब तो वो करोड़ों कि संख्या में हो गए होंगे और तुमको वो धिक्कारते हैं, दुत्कारते हैं, कहते हैं तुम तो भौतिकवादी हो, तुम्हारा माल खाते हैं और तुमको दीनता के भाव से देखते भी हैं कि तुम भौतिकवादी को। एक समझ पैदा करने की जरूरत है, मैं तुम्हें एक गहरा राज बताना चाहता हूँ। मैं धर्म को सारी धार्मिकता को, सारी मनुष्यता के लिए सरल कर देना चाहता हूँ। अगर तुम्हें लम्बी और गहरी सांस लेना आ जाये तो तुम्हारे अवचेतन मन की सफाई हो जायेगी। तुम्हारा व्यक्तित्व बदलने लग जायेगा, तुम्हारा रूपांतरण हो जायेगा और मैं कहता हूँ गलत श्वास लेने का नतीजा है – आतंकवाद। ठीक से सांस लेना नहीं आता है तुम्हें, इसलिए सारी पृथ्वी पर आतंकवाद फैला हुआ है और तुम्हारे अवचेतन तल में कचरा भरा हुआ है, तुम बीमार हो, उदास हो, निराश हो, तुम मरे-मराये हो, तुम तनाव में हो, तुम २४ घंटे उपद्रव में हो इसलिए तुम्हें श्वास लेना नहीं आता। अब मैं किसी से कहूँगा कि गलत श्वास लेने का नतीजा है आतंकवाद। आतंकवाद तो लोग नहीं समझेंगे लेकिन यदि तुम अपनी श्वास लेने कि प्रक्रिया पर ध्यान दो, थोडा बदलाव करो और ज्यादा नहीं थोडा, सिर्फ २१ दिन प्रयोग करो तो तुम्हें परिवर्तन स्वयं होने लगेगा। बीमारी बाहर नहीं, बीमारी तुम्हारे भीतर है। मैं एक इंटरव्यू पढ़ रहा था उसमें अफगानी लोगों से पूछा गया कि क्या ओसामा बिन लादेन अफगानिस्तान में रहता है? पाकिस्तान के कुछ लोगों से पूछा गया कि क्या ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में रहता है? मुझे बड़ा अजीब लगा कि उन लोगों ने कहा कि ओसामा बिन लादेन अफगानिस्तान में नहीं, पाकिस्तान में नहीं, हमारे दिलों में रहता है, अब आतंकवाद मनुष्य के प्राणों में प्रवेश कर गया है वहीँ पर सफाई कि जरूरत है। बाहर गिल साहब चाहे जितनी सफाई करते रहें, बाहर कि सफाई से कुछ होने वाला नहीं है, इसकी सफाई का रास्ता सिर्फ मनुष्य के अवचेतन मन में है। जब तक वहां पर प्रयास नहीं किया जायेगा तब तक आतंकवाद समाप्त नहीं होगा और मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि अवचेतन मन को आपके प्राणों को आपके अस्तित्व के भीतर की सफाई का पृथ्वी पर एक ही मार्ग पैदा हुआ है, पृथ्वी पर आज तक और दूसरा मार्ग नहीं है, जीवन मन आनंद के अनुभव से गुजरने का एक ही मार्ग पृथ्वी पर पैदा हुआ है, वो मार्ग है ध्यान। अगर किसी को ध्यान की छोटी सी झलक लग जाये तो आदमी दूसरों को मारने के बजाये अपने अहंकार को मारने की व्यवस्था करने लगता है, बदलने लगेगा। अगर ध्यान की छोटी सी झलक लग जाये, ऐसा आदमी किसी दूसरे को आतंकित करने की चेष्ठा ही नहीं करेगा। वो व्यक्ति स्वयं को आनंदित करने की चेष्ठा में संलग्न होने की चेष्ठा करेगा।
सर्वोत्तम साइड के लिए साधुवाद
जय जय
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