झूठे धर्मों को विदा करो
तीसरी बात मैं कहना चाहता हूँ कि धर्म के नाम पर बड़ी नासमझियां फैली हैं संसार में, उन नासमझियों के खिलाफ मनुष्य को जगाना है मनुष्य को सचेत करना है साड़ी मनुष्यता को सचेत करने के लिए धार्मिक नासमझियों के खिलाफ एक धार्मिक अभियान चलाये जाने कि जरूरत है जिसके लिए साई डिवाइन सारी दुनिया को एक मंच देने का काम करेगा। सबसे बड़ी भूल जो मानवता के इतिहास में मेरी समझ में आती है वो ये है कि उसमें संस्कृतियों को धर्म का पर्याय मान लिया है। हिन्दू संस्कृति है, मुस्लिम संस्कृति है, ईसाई संस्कृति है। संस्कृति का अर्थ रहन-सहन का तरीका है, संस्कृति बनती है संस्कार से, संस्कार का अर्थ है जैसी आपकी आदत पड़ जाये रहने की, सहने की, उठने की, बैठने की आदि। कोई पूरब की ओर मुख करके प्रार्थना करता है, कोई पश्चिम की ओर मुख करके प्रार्थना करता है, कोई मूर्ति को पूजता है, कोई इस तरह खाता है, कोई उस तरह खाता है, कोई इस तरह मकान बनाता है कोई उस तरह मकान बनाता है सबकी अपनी-अपनी संस्कृतियाँ हैं। हिन्दू संस्कृति है, मुस्लिम संस्कृति है, ईसाई संस्कृति है ये सब संस्कृतियाँ हैं और दुनिया में संस्कृतियाँ विविध होनी चाहिए हजारों-करोड़ों संस्कृतियाँ होनी चाहिए। दुनिया कितनी बेहूदा हो जायेगी, कितनी बेरौनक हो जायेगी। अगर एक ही तरह के लोग होंगे पृथ्वी पर तो मंदिर भी अच्छा है, मस्जिद भी अच्छी है, अच्छा है, सुन्दर है, सुन्दर मस्जिद बनें, सुन्दर मंदिर बनें, सुन्दर गिरिजाघर बनें, सौन्दर्य बिखरे सारी दुनिया में और सबके प्रति सम्मान का भाव हो। ये संस्कृतियाँ धर्म नहीं हैं संस्कृतियाँ तो बहुत सारी हैं, अनगिनत हैं। धर्म तो एक ही है पृथ्वी पर। धर्म का अर्थ है वह जो धारण किये हुए हो, धर्म तो वह है जिसने चाँद को , तारों को, पशु को, पक्षी को, सारे प्राणियों को इस अनंत-अनंत आकाश को जो संभाले हुए है वो धर्म है। भारतवर्ष का ऋषि कहता है धर्म धृत धातु से बनता है जिसका अर्थ है धारण किये हुए। इस अस्तित्व को एक धागे में पिरोये है वही धर्म है। धर्म आज तक पृथ्वी पर एक ही हुआ है वह शाश्वत है, सदैव है, सत्य है, सनातन है, निरंतर है, वही है उसके अलावा और कुछ है ही नहीं उसी को चाहे परमात्मा कहो, चाहे गाड कहो चाहे कुछ भी नाम दे दो। संस्कृतियाँ धर्म नहीं हैं, ये नासमझी है, हिन्दू धर्म है, मुस्लिम धर्म है, संस्कृतियों को धर्म की संज्ञा नहीं दे सकते क्योंकि धर्म तो एक ही है जो हिन्दू को भी संभाले है, मुस्लिम को भी संभाले है, ईसाई को भी संभाले है ये समझ पैदा करनी है धर्म संस्कृति का पर्याय नहीं है। धर्म तो केवल एक है और वह एक धर्म, एक पृथ्वी, एक मनुष्यता सबके लिए एक है वो परमात्मा भी एक है। सबका मालिक है ये समझ पैदा करने की जरूरत है और ये समझ पैदा की जा सकती है। संकल्प लो समझ पैदा करने की और मैं कहता हूँ कि ये संकल्प लिया जा सकता है ये समझ पैदा की जा सकती है। संगठित धर्म है पृथ्वी पर हिन्दू, मुस्लिम, सिख तथा ईसाई – ये सब विदा कर दिये जाने चाहिए अब विदाई का वक़्त आ गया है अब भीतर का धर्म पैदा होना चाहिए। भगवान कृष्ण कहते हैं – स्वधर्मे निदनम श्रया। जो आपके भीतर से धर्म आये जो आपके भीतर आनंद आये, जो आपके भीतर भाव आये उसके लिए स्वधर्म ही आपका धर्म है और भीतर से किसी में भाव नहीं आता है कि किसी को मारो, किसी को काटो, किसी को मिटाओ ये भाव भीतर से नहीं आता है ये तो बाहर से डाला जाता है इसका प्रशिक्षण दिया जाता है इसकी ट्रेनिंग दी जाती है ये सारे आतंकवादी अधिकांश गरीब देशों में पैदा होते हैं, उन गरीब नागरिकों को, गरीब बच्चों को पचास लाख, एक करोड़ रुपयों का लाभ दे दिया जाता है और उन्हें सिखा दिया जाता है कि तुम धर्म के लिए लड़ो। भीतर से नहीं आता है भीतर से तो आनंद का भाव पैदा होता है वो तुम्हारा स्वाभाव है। स्वाभाव से तुम आनंद स्वरुप हो कि तुम्हें ऊपर से सिखाया जाता है प्रशिक्षण दिया जाता है तब तुम हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई – ये सब धर्म नहीं – धर्म के भूखे हैं। मुस्लमान कहते हैं कि तुम धर्म युद्ध करोगे तो मरे जाओगे या जीत जाओगे – एक ही चीज हो सकती है, जीत जाओगे तो संसार पर शासन करोगे, मारे गए तो स्वर्ग मिलेगा। और कमोवेश ईसाई भी यही बात कहते हैं हिन्दू भी यही बात कहते हैं कि तुम मारे गए धर्म के नाम पर तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा। इतना बेवक़ूफ़ बनाते हैं – स्वर्ग लोक किसी ने देखा है, स्वर्ग कहाँ है, स्वर्ग कहीं सातवें आसमान के पास नहीं है। स्वर्ग अगर है तो यहीं, नरक अगर है तो यहीं। अगर तुम सुख से जी रहे हो, आनंद में जी रहे हो तो स्वर्ग में हो; दुःख में जी रहे हो, अशांति में जी रहे हो तो तुम नर्क में जी रहे हो। किसी ने स्वर्ग नहीं देखा लेकिन स्वर्ग के नाम पर जाने कितने लोगों ने अपनी गर्दन कटवा दी और दूसरों कि गर्दन काट दी।
सर्वोत्तम साइड के लिए साधुवाद
जय जय
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