झूठे धर्मों को विदा करो
प्रातः वन्दनीय परम पूज्य श्री सद्गुरु के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम, ह्रदय से प्रणाम। आप सब के भीतर के परमात्मा को और आप को भी मेरा ह्रदय से प्रणाम, शत-शत प्रणाम।
आज साई-डिवाइन फाउन्डेशन का प्रथम संकल्प-समारोह मनाया जा रहा है। यानि साई-डिवाइन फाउन्डेशन का इसी वर्ष जन्म हुआ सन 2008 में। लेकिन जन्म होने के पहले बच्चा नौ महीने गर्भ में रहता है, साई-डिवाइन फाउन्डेशन नौ वर्ष तक गर्भ में था। लेकिन नौ वर्ष व्यतीत बाद इस शिशु ने जन्म लिया “साई-डिवाइन फाउन्डेशन”। आज प्रथम वर्षगांठ के अवसर पर मैं मैं बहुत आनंदित हूँ, बहुत भावविभोर हूँ, जब मैं यहाँ बैठता था तो मेरे सिर के ऊपर छत नहीं थी, कई बार ऐसा अवसर आया कि हमारे प्रेमी-शिष्य बारिश में छाता ले लेकर मुझे सुना करते थे और कहते थे कि गुरूजी! आप प्रवचन करते रहिये। आप बारिश में भीगते हुए प्रवचन सुनते रहते थे। हमारी यात्रा पूरी हुई अब हमारे उपर छत है। यही नहीं हमने सारी दुनिया को एक सन्देश देने का संकल्प लिया है। जिस संकल्प की गूँज नौ वर्ष तक होती रही उस संकल्प में जिन-जिन लोगों ने हाथ बटाया वे सभी भाग्यशाली हैं।
श्री रोहताश गोयल जी अभी बोल रहे थे, बड़े प्रीतिकर वचन थे उनके। बड़े ह्रदय को छुए। उन्होंने कहा कि प्रसाद मिले तो उसे बाँट लेना चाहिए। अगर बांटा नहीं तो प्रसाद, प्रसाद ही नहीं हुआ। सद्गुरु ने जो कुछ सम्पदा मुझे दी। उसे सिर्फ बांटने का ही तो काम कर रहा हूँ यहाँ आपके बीच। इस सम्पदा को मैं सारी दुनिया में बाँट देना चाहता हूँ यही मेरा पहला संकल्प है आज का। इसी संकल्प की घड़ी में मैं कह देना चाहता हूँ कि भारतवर्ष का ऋषि कह दिया करता था कि बहुत आनंद है इस जगत में। अक्सर मेरे मुंह से पहला वाक्य निकला करता था बहुत आनंद है इस जगत में। लेकिन आज दुनिया की धरती पर एक-एक आदमी के मुंह से यही निकलता है की बहुत आतंक है इस जगत में। ऋषि कहता था बहुत आलोक है इस जगत में। हम कहते हैं बहुत अशांति है इस जगत में। ऋषि कहता था बहुत सौन्दर्य है इस जगत में। हम कहते हैं कि बहुत उपद्रव है इस जगत में। इतना आतंक, इतनी अशांति, इतना उपद्रव सारी दुनिया इस पर चर्चा कर रही है। टी वी पर देख कर, लोगों से सुनकर, पत्रिकाओं में पढ़कर हम लोग संकल्प ले रहे हैं कि हम सफाया करके रहेंगे। हम झुकेंगे नहीं। हम मार देंगे, हम मिटा देंगे। किस को ? किस को मारोगे ? किसको मिटा दोगे? भगवान महावीर को जब आत्म-बोध प्राप्त हुआ तो उन्होंने एक ही बात कही “मित्त मैव सभ्य भुवेतु बैर, मज्य न केवई।।” उन्होंने कहा कि यदि हम किसी पशु को मारते हैं या किसी की छाती में छुरा घोंपते हैं तो यह मत समझना कि दूसरे की छाती में छुरा घोंप रहे हो वह छुरा स्वयं आप अपनी छाती में घोंप रहे हैं। ये समझ पैदा हो जाय तो इसी का नाम आध्यात्म है, इसी का नाम तो धर्म है। लेकिन बड़ा दुर्भाग्य है कि २६ नवम्बर को हिंदुस्तान की धरती पर मुंबई में आतंकी हमला होता है और ११ सितम्बर की घटना सारे विश्व को हिला देती है। अमेरिका की दो बड़ी इमारतें जलकर राख हो गयीं और हजारों-लाखों लोग भस्मिभूत हो गये। बड़ा ही दुर्भाग्य है कि मैं कोई पत्रिका पढ़ रहा था मैंने बड़ी विचित्र सी बात सुनी दुनिया के लोग कह रहे थे कि अल्लाह की दुआ से अमेरिका की दोनों इमारतें भस्म हुई हैं । कितना बड़ा दुर्भाग्य है कि आतंकी हत्या और हमला करते हैं, मनुष्यता और बदनाम होती है। कहते हैं कि हम धर्म के नाम पर युद्ध कर रहे हैं, धर्म के नाम पर आतंक कर रहे हैं, इस आतंक को मिटाने के लिए कोने-कोने में संकल्प लिया जा रहा है और आज-कल तो झड़ी लगी हुई है दुनिया के कोने-कोने में। अख़बार को, टी वी को देखिये सभी कह रहे हैं कि हम मिटा देंगे। हम ख़त्म कर देंगे, लेकिन यह कोई नहीं कह रहा है कि यह कैसे पैदा होता है। गिल साहब जैसे कर्मठ योगी इस धरती पर हैं जो आतंक फ़ैलाने वाले लोगों को, उनके कमांडर्स को देख रहे हैं लेकिन जड़ से इसे कैसे ख़त्म किया जा सकता है इसकी चर्चा कहीं भी सुनने को नहीं मिलती। आतंकवादी लोगों को ख़त्म करने के लिए एक और आतंकवाद पैदा किया जाय इसकी बात सब लोग कर रहे हैं। टी.वी.चैनल पर देखिये वो मार रहे हैं और आप उनसे ज्यादा मारने की तैयारी कर रहे हैं। साई-डिवाइन फाउंडेशन के मंच से यह बता देना चाहता हूँ कि आतंकवाद के मूल में दो ही चीजें हैं – एक धार्मिक कट्टरता और दूसरी अंधी राष्ट्रवादिता। अंधी राष्ट्रवादिता कि मैं हिन्दुस्तानी हूँ, मैं पाकिस्तानी हूँ; जैसे हिन्दुस्तानी पहले हैं, पाकिस्तानी पहले हैं मनुष्य बाद में।
सर्वोत्तम साइड के लिए साधुवाद
जय जय
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