महत्त्वपूर्ण क्रांति-सूत्र
भली-भांति गृहस्थ जीवन बिताते हुए सिद्ध ऊर्जा साधना के माध्यम से गहन ध्यान में उतरने की साधना और व्यावहारिक जीवन में प्रेम का प्रवाह – यही है परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक जीवन दर्शन का सार! उनके द्वारा ध्यान और प्रेम की नाव से परमात्मा तक की यात्रा में जिन अद्भुत क्रांति-सूत्रों का पतवार के रूप में उपयोग किया जाता है उनका सार कुछ इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है:-
- ईश्वर नहीं, आनंद खोजो। परमात्मा कोई व्यक्तिवाची अस्तित्व नहीं है। इस अस्तित्व की परम ऊर्जा जिसे हम परमात्मा की संज्ञा देते आये हैं, वह शांति और आनंद के रूप में मनुष्य जीवन में प्रकट होती है। अतः शांति और आनंद की तलाश ही परमात्मा की खोज बन जाती है।
- पल-पल मौज में जीते हुए निरंतर वर्तमान में जीने का अभ्यास – जहाँ आने वाले कल और बीते हुए कल की कोई चिंता न हो।
- प्रेम को फैलाओ, परमात्मा स्वयं प्रकट हो जायेगा। अतः अहंकार के विसर्जन का नित्य अभ्यास जरूरी है क्योंकि जब तक अहंकार है तब तक प्रेम संभव ही नहीं।
- समाज और धर्म के नाम पर बचपन से डाले गए रुढ़िवादी संस्कारों, विचारों, सड़ी-गली मान्यताओं और दम तोड़ती परम्पराओं को छोड़ देने का साहस करना और बच्चे जैसा सहज-सरल हो जाने का अभ्यास करना।
- सत्य को, स्वयं को, आनंद को पाने के लिये सद्गुरु को प्राप्त करना और फिर जीवंत परमात्मा स्वरुप सद्गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण के भाव से कर्तापन के विसर्जन का अभ्यास करना।
- परमात्मा इस ब्रम्हांड के अणु-अणु, कण-कण में व्याप्त है। जब चारों ओर परमात्मा दिखाई पड़ने लगे तो शरीर ही मंदिर बन जाता है और हस सांस प्रार्थना बन जाती है। फिर अलग से मंदिर और पूजा की जरूरत नहीं रह जाती है।
- प्रार्थना का अर्थ मांगना या शिकायत करना नहीं है, बल्कि जो कुछ भी मिला है उसके लिये परमात्मा के प्रति गहन धन्यवाद के भाव से भर जाना है। धन्यवाद का भाव मंदिर-मस्जिद जाने से नहीं, असपताल जाने से पैदा हो सकता है। अस्पताल में जब तुम देखोगे की तुम्हारी छाती पर प्लास्टर नहीं चढ़ा है, तुम्हारे शरीर में किसी दूसरे के शरीर का खून नहीं डाला जा रहा है, तुम्हारे शरीर में नली द्वारा भोजन नहीं पहुँचाया जा रहा है तो तुम्हारे ह्रदय धन्यवाद के भाव से परमात्मा के चरणों में झुक जायेगा। इस प्रकार धन्यवाद के भाव से झुक जाने के नाम ही प्रार्थना है।
- सिद्ध ऊर्जा प्रवाह – साधना का नित्य अभ्यास करना तथा साक्षी बनकर जीवन जीना ही श्रेष्ठ है। जीवन एक खेल है। यहाँ सब कुछ मात्र अभिनय है। किसी क्षण यह खेल समाप्त हो सकता है। अतः जिंदगी में कभी भी गंभीर नहीं होना है, मात्र खेल पूर्ण होना है। इस सत्य की गहन समझ से ही जिंदगी में साक्षी भाव और ध्यान की साधना प्रतिफलित होने लगती है।
उक्त सूत्रों के अतिरिक्त दो महत्त्वपूर्ण जीवन-क्रांति सूत्र श्रद्धेय सदगुरुदेव द्वारा शक्तिपात-दीक्षा के समय अन्तरंग व्यक्तिगत सान्निध्य में परम गोपनीय सम्पदा के रूप में प्रदान किये जायेंगे।
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