प्रेम की अभिव्यक्ति
प्रेम क्या है? प्रेम दूसरे की आँखों में अपने को देखने की कला है। दूसरों की आँखों में अपने को झांकना। जब किसी दूसरे की आँखें आपके लिए इतनी आतुर हो जाती हैं, इतनी तत्पर हो जाती हैं, तो आपको प्रेम की गंध मिलने लगती है। उन आँखों से प्रेम की सुवास आने लगती है। आपके चित्त में उस व्यक्ति के प्रेम का फूल खिलने लगता है, उसे ही हम प्रेम कहते हैं। जिसने प्रेम का अनुभव किया है, वह कभी भी महत्वाकांक्षा की बीमारी में नहीं उलझता। जिसने किसी की आँखों में प्रेम की झलक पा ली है, वह तो सोचता है की बहुत कुछ है जीने के लिए। फिर वह राजनीति में नहीं उतरता है। राजनीति में उतरने वाले लोग जीवन में प्रेम से वंचित लोग हैं, जिन्होंने कभी जीवंत आँखों में प्रेम का अनुभव किया ही नहीं। प्रेम से वंचित लोग ही खोजते हैं कि मैं कुछ पा लूं जिससे दूसरों को दिखा सकूं कि मैं कुछ हूँ।
प्रेम आपको सार्थकता का अनुभव करा देता है। प्रेम से वंचित लोग ही महत्वाकांक्षा की दौड़ में अपने इस अनमोल जीवन का सर्वनाश कर देते हैं और शांति और आनंद रुपी परमात्मा का बोध कभी नहीं कर पाते। वे प्रेम करना जानते ही नहीं। उनके पास अपने परिवार से भी प्रेम करने का समय नहीं होता। प्रेम तो आत्मा का भोजन है और यही वह रसायन है तो आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है। किन्तु आप प्रेम भी ह्रदय से नहीं बुद्धि से करते हैं। प्रेम में बुद्धि ही सबसे बड़ी बाधा है। मैं हमेशा कहता हूँ कि बुद्धि से जितने आप कार्य करते रहे हैं आज तक दुनिया में उससे आपने दुःख ही पाये हैं। बुद्धि कभी सुख नहीं दे सकती है। इसीलिए इस जीवन में जितनी बुद्धि प्रधान होती जाती है उतना ही जीवन दुःख प्रधान होता जाता है। क्योंकि चेतना का केंद्र या तो ह्रदय है या बुद्धि। जीवन इतनी अद्भुत कड़ी है जो केवल गणित या केवल बुद्धि से नहीं चल सकता है। उसके लिए तो ह्रदय भी चाहिए। इसलिए हमारे ऋषियों ने परमात्मा तक पहुँचने के लिए जितने मार्ग बताये वे सब ह्रदय प्रधान हैं, ताकि आपकी आत्मा के लिए द्वार बन सकें, परमात्मा का दवा बन सकें। बुद्धि से लिये गये निर्णय दुखदायी होते हैं। जब प्रेम का फूल खिलने लगता है तो ह्रदय खुल जाता है तभी सही निर्णय होता है। वह अशांति का अंत कर देता है। इस ह्रदय को खोलने की कला को तो सद्गुरु के चरणों में बैठकर ही सीखनी पड़ेगी। भारतवर्ष की सारी साधनाएं आपके ह्रदय को खोलने का विज्ञान हैं।
आत्मा की सुगंध की पहली खबर, परमात्मा की अनुभूति की पहली खबर प्रेम के रूप में होती है। परमात्मा की झलक इस पृथ्वी पर आती है और परमात्मा की पहली किरण अगर जीवन में आती है, तो वह प्रेम की झलक के रूप में आती है। परमात्मा की अनुभूति प्रदान करने वाली कोई दूसरी अनुभूति इस धरती पर नहीं है। केवल प्रेम ही वह अनुभूति है जो अनुभव होने लगे तो धीरे-धीरे चलकर उत्कर्ष पर पहुँच कर परमात्मा के अनुभव में बदल जाती है। वही पहली झलक है, वही पहली गंध है परमात्मा की। यही कसौटी है कि परमात्मा की किरण आपके पास तक आनी शुरू हो गयी है अथवा नहीं।
एक युवक स्वामी रामानुजाचार्य के पास पहुंचा और बोला, गुरुवार-बहुत दूर से आपका नाम सुनकर आया हूँ। मुझे कोई साधना बताइए। मैं पूरे प्राणों से तैयार हूँ, मुझे परमात्मा को प्राप्त करना है, मुझे परमात्मा को पाने का ज्ञान दीजिये। स्वामीजी ने कहा, बेटे जिंदगी में तुमने किसी से प्रेम किया है। उसके बारे में थोड़ा बताओ, तब मैं तुम्हें परमात्मा का मार्ग समझा सकूंगा। युवक बोला, स्वामी जी मैं फिजूल की बातों में समय व्यर्थ नहीं करना चाहता हूँ। आप मुझे ज्ञान की, आत्मा-परमात्मा की बातें बतायें। प्रेम आदि व्यर्थ की बातों में मैं उलझना नहीं चाहता हूँ। स्वामी रामानुजाचार्य जी ने कहा, बेटे दुनिया की कोई भी ताकत तुम्हें परमात्मा तक नहीं पहुंचा सकती क्योंकि तुमने अभी तक अपने जीवन में प्रेम का अनुभव ही नहीं किया है। कितनी भी माला फेरते रहो, तुम कितना भी मंदिर में पूजा पाठ करते रहो, कितनी ही कथा करते रहो लेकिन जब तह आपने किसी को प्रेम नहीं किया है, आपका रास्ता परमात्मा की ओर जा ही नहीं सकता है।
जो पुरुष किसी स्त्री को प्रेम नहीं कर सका, जो स्त्री किसी पुरुष को सच्चे अर्थों में प्रेम नहीं कर सकी, ऐसे पुरुष, ऐसी स्त्री मंदिर में परमात्मा की प्रतिमा को प्रेम नहीं कर सकते। अतः जब तक तुम मनुष्य को प्रेम करना नहीं सीखोगे, तब तक परमात्मा के प्रति प्रेम करने का रास्ता नहीं बन पायेगा। यह सम्पूर्ण जगत परमात्मा की अभिव्यक्ति है। परमात्मा कोई दाढ़ी-मूंछ वाला व्यक्ति नहीं है, वह तो शांति और आनंद के रूप में जगत में विद्दमान है। जितने प्राणी हैं ये सब ब्रम्ह के रूप में है, इनके प्रति आप प्रेम से भर जाओ यानि विराट अस्तित्व के प्रति प्रेम से भर जाना ही परमात्मा की सच्ची प्रार्थना है।
उपाय क्या है परमात्मा को प्रेम करने का? उपाय यही है कि इतना प्रेम से भर जाओ, कि किसी के प्रति घृणा-शत्रुता आये ही नहीं। आप पहले स्वयं प्रेम से भरो और शुरू करो अपने घर, अपने आँगन से। जो व्यक्ति अपनी पत्नी को प्रेम नहीं कर सकता, स्वामी सुदार्शनाचार्य जी कहते हैं कि वह मंदिर में परमात्मा के प्रति कभी प्यार से नहीं भर सकता। यदि तैरना सीखना होता है तो उथले पानी में उतरते हो। उसी प्रकार सीधे परमात्मा से न शुरू करो। भगवन कृष्ण कहते हैं कि शुरू करो, एक-एक कदम चलो, कड़ी से कड़ी साधना भी सिद्ध हो जायेगी। जैसे झरने से निरंतर झरता हुआ पानी कठोर से कठोर चट्टान को भी तोड़ देता है। वैसे ही तुम थोड़ा-थोड़ा शुरू करो। एक-एक कदम चलो। परमात्मा की मंजिल तक आपका प्रेम पहुँच जायेगा। मनुष्य के प्रति प्रेम तो सहारा है, किनारा है। जिसने किनारा ही न पकड़ा वह सागर में कैसे उतर पायेगा? वो परमात्मा के प्रेम रुपी सागर में नहीं उतर सकता है। शुरू करो घर से – यही सन्देश है।
प्रेम एक तरह की मृत्यु है, मरना सीखो। जिसने मरना नहीं सीखा, वह आध्यात्म के जगत में कुछ भी नहीं पा सका। आध्यात्म में एक शब्द बहुत मत्त्व्पूर्ण है ‘द्विज’ यानि दूसरा जन्म। यह दूसरा जन्म सद्गुरु देता है। कैसे देता है? जब आप झुकना शुरू कर देते हो यानि जब आपके अहंकार का विसर्जन होने लगता है। जब अहंकार का विसर्जन होता है यानि जब आपका ‘मैं‘ मर जाता है तो आपके शरीर में एक नया अहंकारशून्य व्यक्ति प्रवेश करता है। वह सद्गुरु द्वारा पैदा किया हुआ व्यक्तित्व होता है। वह आपको द्विज बना देता है। वही आपको दूसरा जन्म देता है। तो प्रेम भी एक प्रकार की मृत्यु है क्योंकि प्रेम को पाने के लिये उपाय है – अहंकार का विसर्जन। झुके बिना दुनिया में कुछ नहीं मिलता। आप पानी से लबालब भरी हुई सरिता में खड़े रहो। चारों ओर से पानी कल-कल करता हुआ बह रहा है। लेकिन जब तक आप झुकोगे नहीं, पानी आपकी प्यास नहीं बुझा पायेगा। कितना भी प्रेम बरसाते रहें आपके ऊपर लेकिन जब तक आप झुकेंगे नहीं, तब तक वह अमृत की बूँद आपके भीतर नहीं पहुंचेंगी। अहंकार किसी को झुकने नहीं देता है और प्रेम में झुकना अनिवार्य है।
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