प्रेम और परमात्मा

एक अद्भुत शक्ति है, एक अद्भुत ऊर्जा है जो आपको रोज यहाँ बरबस खींच लाती है।  वह अद्भुत शक्ति है – मेरे ह्रदय में आपके प्रति बसा प्रेम।  आप कितनी भी पूजा करते जाओ, कितने भी रटे रटाये श्लोकों का उच्चारण करते जाओ, कितने ही मन्त्रों का जाप करते जाओ, लेकिन जीवन में कुछ मिलता हुआ सा दिखाई नहीं पड़ता है, क्योंकि आप उस महामंत्र से वंचित हो।  वह महामंत्र है – प्रेम का।  प्रार्थना कुछ नहीं है, केवल प्रेम का निचोड़ है।  जैसे फूल को निचोड़ कर इत्र बनता है, वैसे जीवन में प्रेम के सारे निचोड़ों से सुगंध पैदा होती है।  उस सुगंध का नाम ही प्रार्थना है, पूजा है।  प्रेम की सुगंध ही प्रार्थना है।  प्रार्थना का कोई धर्म नहीं होता है।  प्रार्थना तो हार्दिक होती है, ह्रदय से होती है।  उसका सम्प्रदाय से कोई सम्बन्ध नहीं केवल ह्रदय से सम्बन्ध होता है।  लेकिन आपकी सारी पूजा प्रार्थना केवल सम्प्रदायों से सम्बंधित है, पुस्तकों से सम्बंधित है, ग्रंथों से सम्बंधित है।  और उस पूजा प्रार्थना में प्रेम का कोई अंश है ही नहीं।  मैं यह नहीं कहता हूँ की प्रेम परमात्मा के प्रति हो, जिसे आप जानते ही नहीं हो उस भगवान के प्रति आप क्या प्रेम कर सकते हो?  परमात्मा और कुछ नहीं है, इस ब्रम्हांड में जो कुछ है उसी जगत के रूप में परमात्मा अभिव्यक्त होता है।  पेड़, पौधे, पशु, पक्षी, सारे जीव-जंतु, प्राणी और मनुष्य मात्र – यही परमात्मा के रूप हैं।  अगर इनके प्रति आपके ह्रदय में प्रेम की गंगा उमड़ने पेज, तो समझो परमात्मा के प्रति ह्रदय में प्रेम पैदा होने लगा है।

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