काम क्रोध पर विजय

आपको अगर सीढ़ियों पर चढ़ना हो तो आपको शक्ति की आवश्यकता होती है और परमात्मा की मंजिल पर पहुंचना हो तो जाने कितनी सीढ़ियों पर चढ़ने के बराबर है।  इसीलिए इतने सारे लोगों में से कोई भी व्यक्ति उस मंजिल पर नहीं चढ़ पाता है।  वहां पहुँचने के लिए सबसे पहली आवश्यकता है कि आप ऊर्जावान बनो, अपने अन्दर शक्ति का संचय करो।  आपकी शक्ति तो निरंतर क्षीण होती चली जाती है।  शक्तियां इन्द्रियों के माध्यम से क्षरण होती हैं।  आप आँख खोलकर देखते हैं, आप बोलते हैं, कानों से सुनने का काम करते हैं, इन सबसे आपकी ऊर्जा क्षीण होती है।  ये इन्द्रियां ही आपकी ऊर्जा कि उत्पत्ति और उसके विनाश का कारन हैं।  इन्द्रियों के द्वार पर ही निकास और प्रवेश दोनों का बोर्ड लगा हुआ है।  लेकिन आप ऊर्जा के सृजन का काम नहीं के बराबर करते हैं।  जबकि विनाश का कार्य तो निरंतर जारी रहता है।

ऊर्जावान बनो ताकि आप परमात्मा कि सीढ़ी पर चढ़ सको।  ऊर्जावान बनने के लिए आपको जीवन ऊर्जा और उसका संग्रह करना चाहिए।  सारा आध्यात्म इसी पर केन्द्रित है कि आपकी ऊर्जा कैसे विकसित हो?  जिससे कि आप अंतर यात्रा करते हुए उस परमात्मा कि मंजिल तक पहुँच सकें।  गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि श्रद्धावान ही ज्ञान को प्राप्त करता है।  जितेन्द्रिय और श्रद्धावान होकर पुरुष शांति और आनंद रुपी परमात्मा को प्राप्त कर लेता है।  इस वाक्य में सम्पूर्ण आध्यात्म का सार है।  भगवान श्री कृष्ण कहते हैं,  जितेन्द्रिय होकर यानि इन्द्रियों पर विजय पाकर ही शक्ति के हरण को रोका जा सकता है।

इन्द्रियों के जीतने से मतलब इन्द्रियों से लड़ना नहीं, इन्द्रियों को जान लेना है।  लड़ोगे तो हारोगे, जानने का प्रयास करोगे तो जानने के प्रयास में ही जीतते चले जाओगे और आपकी विजय हो जाएगी।  उसका प्राण बिंदु है ज्ञान और ज्ञान ही विजय है।  एक पाश्चात्य विद्वान ने बहुत ही प्रीतिकर बात कही है ‘एनर्जी इज डिलाईट’  यानि ऊर्जा से भरे रहना ही आनंद है और परमात्मा का अनुभव करना है।  परमात्मा का अनुभव केवल इसीलिए नहीं कर पाते हो क्योंकि आपके भीतर ऊर्जा है ही नहीं, आपकी आत्मा में रसधार है ही नहीं, चमक है ही नहीं।  चमको, दमको और गरजो।  यह तभी संभव है जब आपके भीतर ऊर्जा हो, जब आप इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर लो।  आप अपनी इन्द्रियों से लड़ो नहीं उन्हें जानने कि चेष्ठा करो।  लड़ने का अर्थ है दमन।  दमन का अर्थ है दबाना।  आप अपनी जिन इन्द्रियों को जितना दबाना चाहोगे वो उतनी ही शक्ति प्राप्त करके उभरती हैं।  दबाने से कोई चीज दबती नहीं है और ज्यादा उभरती है, यह प्रकृति का नियम है।

एक युवक सद्गुरु के पीछे पड़ गया कि मुझे मन्त्र दो।  वह गुरु की कुटिया के बाहर लाठी, डंडा लेकर बैठ गया।  उसने कहा की यदि आप मुझे मन्त्र नहीं दोगे तो मैं अपना जीवन भी दांव पर लगा दूंगा। गुरु महाराज ने सोचा कि यह बड़ा ही हठी युवक है।  कोई बात मानता ही नहीं है, तो उन्होंने पांच शब्दों का एक मन्त्र उसे दिया और कहा कि तुम इसको ग्यारह बार आज रात ही बारह बजे पढ़ लेना।  तुम्हें यह मन्त्र सिद्ध हो जायेगा।  जो भी कार्य तुम इस मन्त्र को पढ़कर करोगे वह सिद्ध हो जायेगा, मैं तुम्हें आशीष देता हूँ।  वह उद्दंड युवक ख़ुशी के मारे उछल गया और मन्त्र को लेकर भागने लगा।  इसी बीच सद्गुरु ने उसे वापस बुलाया और कहा, बेटे इस मन्त्र को तुम ले जाओ लेकिन एक चीज का तुम विशेष ध्यान रखना कि इस मन्त्र का उच्चारण करते समय तुम बंदरों को बिल्कुल याद मत करना, नहीं तो यह मन्त्र प्रभावहीन हो जायेगा।  युवक ने कहा गुरूजी महाराज कोई चिंता की बात नहीं, बंदरों का मेरे खानदान से कोई लेना-देना नहीं है।  मैं उन्हें बिल्कुल याद नहीं करूंगा।

जब वह मंत्र पढ़ने के लिए बैठा, तो वह बन्दर ही उसके चित्त में बार-बार उलझता रहा।  वह सोचता रहा कि जैसे ही यह बन्दर कि आकृति दिमाग से उतर जाये वैसे ही मैं मंत्र पढना शुरू करूं और कहते हैं कि जितना वह उसे भुलाने कि बात करता उतना ही बंदर उसके चित्त में आता जाता।  एक बार भी वह उस मंत्र का उच्चारण नहीं कर पाया।  बंदर को वह जितना दबाता रहा उतना वह उलझ-उलझ कर बाहर आता रहा।  दबाने से दबा ही नहीं।  उसने गुरु के पास जाकर कहा महाराज अगर आपको यह मंत्र देना ही था तो मुझे बंदर के बारे में बताना ही नहीं था।  तो मैं कहता हूँ कि आप एकदम सरल हो जाओ, सब कुछ छोड़ दो उसके ऊपर।  वह बच्चे कि तरह उंगली पकड़कर आपको चलाएगा।   लड़ोगे, दबाओगे, इन्द्रियों से विमुख होना चाहोगे, तो वह और उलझ-उलझ कर बहार आयेंगी।  जैसे प्राचीनकाल में जब आकाश में बिजली कौंधती थी, तो लोग डर जाते थे कि इंद्र देवता को क्रोध आ रहा है।  मनुष्य ने जो पाप कर्म किये उनका दंड देने के लिए ही आकाश में बिजली कौंध रही है।  उस समय दुनिया के चिंतक वैज्ञानिक आकाश में चमकने वाली बिजली को नष्ट नहीं कर पाते थे।  लेकिन उन्होंने उस कौंधने वाली बिजली के राज को जानने का प्रयास किया, समझने का प्रयास किया।  उसका ज्ञान प्राप्त किया कि यह बिजली क्यों चमकती है और गरजती है।  जब उसका ज्ञान वैज्ञानिकों कि समझ में आ गया तो उस ज्ञान का परिणाम क्या हुआ? बिजली उनकी चेली हो गयी।  और आज मनुष्य जैसा आदेश देता है वैसा ही बिजली करती है।  क्योंकि बिजली का विज्ञान उनकी समझ में आ गया।  तो बिजली के विजेता बन गये।

Advertisement

एक उत्तर दें

Please log in using one of these methods to post your comment:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  बदले )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  बदले )

Connecting to %s